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मसखरा उस को न कहना - (गजल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    2122

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हौसला  देते  न  जो  ये  पाँव  के  छाले  सफर में
हर सफर घबरा के यारो,  छोड़ आते हम अधर में
****
एक भटकन है जो सबको, न्योत लाती है यहाँ तक
कौन  आता  है स्वयं ही, यार दुख के इस नगर में
****
एक  वो  है पालती  जो,  काजलों के साथ आँसू
कौन रख पाता भला अब, सौतने  दो  एक घर में
****
आशिकी की इंतहाँ ये, खुदकुशी का शौक मत कह
हॅसते-हॅसते डाल दी जो किश्तियाँ उसने भवर में
****
खो गया चंचलपना सब, खो गयी निश्छल हॅसी भी
राह  कैसी  भाग्य ने ये  सौंप  दी  बाली उमर में
****
मसखरा उस को न कहना वो मसीहा गाँव भर का
बाँटता  फिरता  हॅसी  जो धाव चाहे सौ जिगर में

****

(  रचना 2 सितम्बर 2014 )

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 493

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:37am

आदरणीय भाई जवाहरलाल जी गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:36am

आदरणीय भाई आशुतोष जी आपकी प्रतिक्रिया से गजल को जो मान मिला है उसके लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:35am

आदरणीय भाई शकील जी, गजल की प्रशंसा और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:35am

आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 8:56pm

बहुत ही सुन्दर रचना!

एक  वो  है पालती  जो,  काजलों के साथ आँसू
कौन रख पाता भला अब, सौतने  दो  एक घर में 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 10, 2014 at 11:30am

पावों की छालों से हौसला ///क्या बात है .................आदरणीय लक्ष्मण जी हर शेर उम्दा है ..आपकी बेहतरीन ग़ज़लों की श्रंखल में एक और शानदार कड़ी ..आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by शकील समर on September 9, 2014 at 4:35pm

आशिकी की इंतहाँ ये, खुदकुशी का शौक मत कह 
हॅसते-हॅसते डाल दी जो किश्तियाँ उसने भवर में 

सुंदर गजल के लिए ढेरों बधाई।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2014 at 1:02pm

धामी जी

बहुत उम्दा  i लजीज व्यंजन की तरह i हर डिश स्वादिष्ट i

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