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ग़ज़ल..चांद बढ़ता रहा..

चाँद बढ़ता रहा...... चाँद घटता रहा.
यूँ कलेजा हमारा ........धड़कता रहा.
--
उलझने रात सी ....क्यों पसरती रहीं.
वो दरम्याँ बदलियों .... भटकता रहा.
--
टिमटिमाता सितारा रहा... भोर तक. 
शब सरे आसमा को.... खटकता रहा.
-- 
उस हवेली पे जलता था... कोई दिया
बन पतंगा सा उस पे.... फटकता रहा.
--
चन्द साँसें अभी हैं...... बचीं रात की.
कोई सपनों में फिर भी. अटकता रहा.
--
उस झरोखे से दी थी..... किसी ने सदा.
सर्प रस्सी से तुलसी .......लटकता रहा.
**हरिवल्लभ शर्मा दि.05.09.2014

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by harivallabh sharma on September 8, 2014 at 8:53pm

बहुत आभार आदरणीय ram shromani pathak जी आपकी स्नेहिल टीप का स्वागत.स्नेह बनाये रखे.

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 11:10am
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हरिवल्लभ जी।। हार्दिक बधाई आपको
Comment by harivallabh sharma on September 7, 2014 at 9:13pm

आदरणीय Akhand Gahmari साहब ग़ज़ल पर आपका स्नेह मिला हार्दिक आभार.

Comment by harivallabh sharma on September 7, 2014 at 9:11pm

आदरणीय Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Akul' साहब बहुत आभार आपने एक भाव पर स्पष्टीकरण चाहा है...आदरणीय,.महाकवि तुलसीदास जी का अपनी प्रेयसी पत्नि के मायके जाने पर बाढ़ में नदी पार कर...खिड़की से लटकते सर्प को पकड़ कर चढ़ कर जाने की किबदंती से प्रेरित होकर यह पंक्तियाँ ज़ेहन में आयीं हैं...मन तुलसी सा खिड़की पर लटकने का भाव है..सादर.

Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 8:59pm

चन्द साँसें अभी हैं...... बचीं रात की.
कोई सपनों में फिर भी. अटकता रहा-------------वाह बहुत खूब 

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 7, 2014 at 8:57pm

उस झरोखे से दी थी..... किसी ने सदा.
सर्प रस्सी से तुलसी .......लटकता रहा.

थोड़ा खटक रहा है। ग़ज़ल की बारीकियाँ नहीं जानता, किंतु भाव नहीं समझ पा रहा हूँ । 

Comment by harivallabh sharma on September 7, 2014 at 8:36pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब आपने अमूल्य समय देकर ग़ज़ल पर प्रतिसाद दिया, हार्दिक आभार आपका सादर.

Comment by harivallabh sharma on September 7, 2014 at 8:34pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी आपकी स्नेहिल टीप ने हौसला बढाया है हार्दिक आभार आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2014 at 5:38pm

आ. हरि वल्लभ भाई , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , आपको बधाइयाँ |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 4:06pm

आदरणीय हरिवल्लभ जी .इस ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई ..सादर 

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