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लघुकथा : भुट्टे वाली (गणेश जी बागी)

            "भुट्टे ले लो, हरे ताजे भुट्टे ले लो !" हर रोज सुबह-सुबह मैले कुचैले कपडे पहने, सर पर टोकरी लिए भुट्टे वाली कॉलोनी में आ जाती थी, मैं तो उसकी आवाज़ से ही जगता था ।

                    आज सुबह किसी की तेज डाँटने की आवाज़ सुनकर बालकोनी में चला आया, भुट्टे वाली महिला को मेरे पडोसी सिंह साहब डाटे जा रहे थे।

                   "कमबख्त सुबह सुबह चिल्ला कर नींद हराम कर देती है, चैन से सोने भी नहीं देती, अगर कल से इस कॉलोनी में चिल्लाई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा"

                    भुट्टे वाली के आँखों में आँसू थे, जाते-जाते केवल यही कह पायी, "बाबूजी माफ़ कर दीजिये, लेकिन का करूँ, अगर न चिल्लाऊं तो मेरे बच्चे चैन से नहीं सो पायेंगे ।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : खोटा सिक्का

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 1:55am

मार्मिक 

Comment by Kavita Verma on August 7, 2014 at 8:10pm

sahi kaha ..

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on July 24, 2014 at 5:01pm

आदरणीय गणेश भाईजी 

गरीब ममतामयी माँ घर परिवार बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करती । दिन भर खटती है फिर भी अभावों में जीती है।                   लगता है ग्रामीण भुट्टे वाली के उठने का समय और  सिंह साहब के बिस्तर पर जाने का समय लगभग एक है । शहर में ऐसे बिगड़े नवाबों की भरमार रहती है जो सूर्योदय के 3 - 4 घंटे  बाद ही उठते हैं। 
 "कमबख्त सुबह सुबह चिल्ला कर नींद हराम कर देती है, चैन से सोने भी नहीं देती, अगर कल से इस कॉलोनी में चिल्लाई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा"  , (  जैसे पूरी कालोनी इसी की है ) 

ऐसे मीठे बोल बिगड़े नवाबों  के ही हो सकते हैं ! ............ और वह गरीब भुट्टे वाली पलटकर  जवाब देने के बजाय माफ़ी माँग रही है!!! 

कितना अंतर है दोनों के स्वभाव में। एक शहर और एक गाँव में । एक शिक्षित शहरी और एक अशिक्षित ग्रामीण में। 

मेरी हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 24, 2014 at 10:02am

बच्चो को पालने की मज़बूरी दर्शाते हुए डांटने वाले व्यक्ति की नींद खलल पर जोरदार तंज कसती लघु कथा के लिए 

हार्दिक बधाई श्री गणेशजी "बागी" जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2014 at 8:58pm

आदरणीय ग़णेश भाई , दोनो के सोने के अर्थों मे कितनी भिन्नता है ? बहुत सुन्दर !! लघुकथा के लिये बधाइयाँ ॥


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 22, 2014 at 8:50pm

सराहना हेतु ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय विनय कुमार सिंह जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 22, 2014 at 8:50pm

सराहना हेतु ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय विनय कुमार सिंह जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 22, 2014 at 8:49pm

लघुकथा की आत्मा तक जाकर की गई आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है आदरणीय संतलाल जी, ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 22, 2014 at 8:46pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी । 

Comment by mrs manjari pandey on July 22, 2014 at 7:38pm
बच्चे का पेट भरने के लिए माँ क्या क्या नहीं करती ,सहती है। सहज चित्रण।

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