2122/ 2122/ 2122/ 212
इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से
दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से
कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़
आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से
एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से
और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा
इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से
बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई
आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से*
मुबहम =अस्पष्ट, आफ़ाक़ =दुनिया
Comment
आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
शिज्जू भाई
बहुत बहुत बधाई i सभी अशआर बहुत उम्दा i
एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से........... 'सच' को बहुत खूबसूरती से बह्र में बाँधा है आपने
और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा
इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से.........क्या बात कही है आपने, नमन आपकी लेखनी को
बहुत ही बेमिसाल गजल आदरणीय शिज्जू जी, तहे दिल से बधाई स्वीकार कीजियेगा
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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