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दिल को अब के शायद चैन मयस्सर हो -ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

दिल को अब के शायद चैन मयस्सर हो

तेरी क़ुर्बत में जब दिन रात गुज़र हो

 

मेरी बातों का सीधा दिल पे असर हो

गर सुनने का इक तेरे पास हुनर हो

 

बरसें जब सर्द फुहारें रिमझिम-रिमझिम

क्या कहना क्या खूब सुहाना मंज़र हो

 

इक रौ में बहते हैं चश्मे तो भी क्या

बारिश सा बरसो तो ये आलम तर हो

 

मज़्मून लगे जैसे हो इक आईना

तुम एक सुखनवर हो या शीशागर हो

 

सन्नाटे में कोई सरगोशी सी है

जैसे गहरी साँसो का मद्धम स्वर हो

 

-(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by वेदिका on July 22, 2014 at 6:26pm
इक रौ में बहते हैं चश्मे तो भी क्या
बारिश सा बरसो तो ये आलम तर हो ..... इस शेअर का अंदाज बहुत निराला हुआ।

हार्दिक बधाई आदरणीय शिज्जू जी!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 22, 2014 at 5:55pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

//जब भी बरसें सर्द फुहारें फ़ाहों में 
फिर क्या कहना खूब सुहाना मंजर हो  
किन्तु, यह कोई सुझाव नहीं है//
यद्यपि ये सुझाव नहीं है लेकिन जो भी है बेमिसाल है ग़ज़ल में ग़ज़लियत न हो कैसी ग़ज़ल इससे पहले आपने मेरी अन्य रचनाओं की खूब तारीफ की है इस रचना में ज़रूर कमी होगी अन्यथा यहाँ भी आप तारीफ करते आपका बहुत बहुत शुक्रिया इसी तरह नज़रे इनायत होती रहे। जल्द ही इस रचना को संशोधित करके फिर पोस्ट करता हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 20, 2014 at 8:39pm

इस बहर की अहम खुसूसियत इसमें सधे मिसरों के धाराप्रवाह वाचन से उभर कर आती है. उस हिसाब से इस ग़ज़ल को प्रथम दृष्ट्या कुछ और बाँधने की ज़रूरत प्रतीत हो रही है, भाई शिज्जूजी.

अब इसी शेर को लें -
बरसें जब सर्द फुहारें रिमझिम-रिमझिम
क्या कहना क्या खूब सुहाना मंज़र हो

इसे यों किया जाय तो -
जब भी बरसें सर्द फुहारें फ़ाहों में
फिर क्या कहना खूब सुहाना मंजर हो  

किन्तु, यह कोई सुझाव नहीं है. बस आपसी समझ की साझेदारी है. विश्वास है, आप मेरे कहे को अन्यथा न लेंगे. मगर ये जरूर कहूँगा कि इस ग़ज़ल के कई अश’आर अभी और ऊँची उड़ान पे जाना चाहते हैं.

सन्नाटे में कोई सरगोशी सी है 
जैसे गहरी साँसो का मद्धम स्वर हो
वल्लाह !! .. उम्दा खयाल !!!
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 7:54pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका हार्दिक आभार

Comment by vijay nikore on July 13, 2014 at 4:38pm

गज़ल बहुत अच्छी बनी है... दाद देता हूँ ... ऐसे ही लिखते रहें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 12:06pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 12:06pm

आदरणीया राजेश दीदी आपका हार्दिक आभार

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:34am

बहुत ही सुंदर गजल आदरणीय शिज्जू जी

मेरी बातों का सीधा दिल पे असर हो

गर सुनने का इक तेरे पास हुनर हो..............खुबसूरत, दिली बधाइयाँ लीजियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2014 at 8:42pm

शिज्जू भैया ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई सभी अशआर एक से बढ़ के एक हैं |आप ऊपर मात्रा मापनी में जहाँ छूट ले सकते हैं उसे ओब्लिक करके इंगित कर देते तो नव ग़ज़ल कारों के समझने के लिए आसान हो जाता | आपको दिली दाद इस शानदार ग़ज़ल पर| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 9:45pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया रचना को समय देने के लिये

कृपया ध्यान दे...

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