For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है

तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है

तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है

किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता

जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है

तेरी नज़रों से मैं कुछ भी छुपा सकता नहीं हमदम

बदन से रूह तक तेरे लिए सबकुछ नुमाया है

कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था

बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 813

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:03am

बहुत बहुत शुक्रिया प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2014 at 8:37pm

किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता

जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है.......................बहुत खूब 

कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था

बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है........................ये भी सुन्दर 

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:22pm

बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया ram shiromani pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:20pm

बहुत बहुत धन्यवाद rajesh kumari जी। त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:19pm

बहुत बहुत धन्यवाद Baidyanath Saarthi जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:19pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय vijay nikore जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:18pm

बहुत बहुत धन्यवाद vandana जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:17pm

बहुत बहुत धन्यवाद umesh katara साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 3:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया gumnaam pithoragarhi साहब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
4 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जा रहे हो छोड़ कर जो मेरा क्या रह जाएगा  बिन तुम्हारे ये मेरा घर मक़बरा रह जाएगा …"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service