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कविता : पूँजीवादी मशीनरी का पुर्ज़ा

मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ

मेरे देश की शिक्षा पद्धति ने

मेरे भीतर मौजूद लोहे को वर्षों पहले पहचान लिया था

इसलिए फ़ौरन सुनहरे सपनों के चुम्बक से खींचकर

मुझे मेरी जमीन से अलग कर दिया गया

अभिभावकों और अध्यापकों ने

कभी मार से तो कभी प्यार से

मेरी अशुद्धियों को दूर किया

अशुद्धियाँ जैसे मिट्टी, हवा और पानी

जो मेरे शरीर और मेरी आत्मा का हिस्सा थे

तरह तरह की प्रतियोगिताओं की आग में गलाकर

मेरे भीतर से निकाल दिया गया भावनाओं का कार्बन

ताकि मैं मशीन की तीव्र गति से उत्पन्न आघातों से

एक बारगी टूटकर बिखर न जाऊँ

और मशीन को न सहना पड़ जाय भारी नुकसान

मुझमें मिलाया गया तरह तरह की सूचनाओं का क्रोमियम

ताकि हवा, पानी और मिट्टी

मेरी त्वचा तक से कोई अभिक्रिया न कर सकें

अंत में मूल वेतन और महँगाई भत्ते से बने साँचे में ढालकर

मुझे बनाया गया सही आकार और नाप का

मैं अपनी निर्धारित आयु पूरी करने तक

लगातार, जी जान से इस मशीनरी की सेवा करता रहूँगा

बदले में मुझे इसके और ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सों में

काम करने का अवसर मिलेगा

मेरे बाद ठीक मेरे जैसा एक और पुर्जा आकर मेरा स्थान ले लेगा

मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ

--------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 28, 2014 at 10:15am

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ Saurabh जी। स्नेह बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 28, 2014 at 10:14am

बहुत बहुत शुक्रिया Arun जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2014 at 1:04am

मशीन की ज़िन्दग़ी मात्र टेक्निकल व्यक्तियों की ही नहीं होती, यह एक ऐसी जीवन-शैली है जो हर युग में सपहलता के ट्रैक पर दौड़ते लोगों की रही है. आदमी के लगातार रोबो बनते चले जाने की प्रक्रिया को जिस संवेदनाके साथ प्रस्तुत करने की कोशिश हुई है, उसके लिए साधुवाद, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.
आपकी शैली की इस कविता के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Arun Sri on May 2, 2014 at 10:56am

लग रहा है कि किसी इंजिनियर की कविता पढ़ रहा हूँ ! :-))
कविता एक  पूरी उम्र की जद्दोजहद को सामने रख रही है ! मशीन के पुर्जे की आवाज किसी मर रहे इंसान की चीखों से मिलती है बहुत ! लेकिन करें भी क्या सभी रेस में हैं ! जो नहीं दौडेगा वो कुचल कर मर जाएगा या अकेलेपन से ! 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2014 at 10:48am

बहुत बहुत धन्यवाद प्राची जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2014 at 10:47am

बहुत बहुत धन्यवाद सत्यनारायण जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2014 at 10:47am

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जितेन्द्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2014 at 10:46am

बहुत बहुत धन्यवाद आशुतोष जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2014 at 10:45am

बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2014 at 10:45am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कुन्ती जी

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