रूठो न दिलदार कि होली आई है
झूम उठा संसार कि होली आई है
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साजन हैं परदेस न भाए रंग-अबीर
गोरी के आँखों से बहता झर-झर नीर
ख़त में साजन को ये लिखकर भेजा है
तुम बिन नहीं क़रार कि होली आई है
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होली के दिन बदला हर रुख़सार लगे
रंग-बिरंगा होली का श्रंगार लगे
पिए भांग हैं मस्त फाग की टोली में
बरसे रंग-फुहार कि होली आई है
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होली के दिन बड़ों का आशीर्वाद रहे
छोटो के संग होली का पल याद रहे
हर मज़हब के लोग खुशी मे खोए हैं
रंगो का त्यौहार कि होली आई है
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सौरभ जी //
जनाब नादिर ख़ान साहब//
आदरणीय गिरिराज भंडारी //
भाई गजेन्द्र जी आप सब को होली गीत पसंद आया .दिली शुक्रिया //
आफीसीयाल वयस्तता के कारण आपलोगो से दूर रहा माफी चाहता हूँ //
भाई सलीमरज़ा, दिल से ले इस होली-गीत के लिए दिलसे धन्यवाद.
विलम्ब से आ पाया हूँ, इसका मझे मलाल है, खेद व्यक्त करता हूँ.
शुभ-शुभ
बहुत खूब आदरणीय सलीम रजा साहब , आपकी कलम रूपी पिचकारी से छूटे शब्द रूपी रंगों ने होली के सम्पूर्ण माहौल को बयां कर दिया है । बहुत बधाई इस शानदार होली गीत के लिए ।
आ. सलीम भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
साज़न हैं परदेस न भाए रंग अबीर |
दिल रोए और आँखों से बहता है नीर |
उनको दिल का हाल ये लिखकर भेजा है |
तुम बिन नहीं करार कि होली आई है सुंदर गीत के लिए आदरणीय सलीम भाई मुबारकबाद .... |
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