For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल- देश सोने की चिरैया----

जब बुजुर्गों की कमी होने लगी।
गर्म खूं में सनसनी होने लगी।।

नेक है दुनियां वजह भी नेक है,
दौर कलियुग का बदी होने लगी।

धर्म में र्इमान में सच्चे सभी,
घूस-चोरी अब बड़ी होने लगी।

प्यार हमदर्दी करें नेता यहां
सारी बातें खोखली होने लगी।

सिक्ख, हिन्दू और मुस्लिम भार्इ हैं,
घर में दीवारें खड़ी होने लगी।

देश सोने की चिरैया थी कभी,
खा गए चिडि़या गमी होने लगी।

जिन्दगी आसां बहुत मुश्किल नहीं,
पाप की दुनियां बली होने लगी।

रात में गोली चली दंगा हुआ,
टूटते सपने जगी होने लगी।


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 6:50pm
आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! इस गजल को नवयुवको जिनके साथ बुजुर्ग नहीं रहते है, उनके द्वारा लिए गए अपरिपक्व निर्णयों के सम्बन्ध में अवधारित करने की कोशिश भर की है। अब कहां तक सही है, यह तो आप जैसे मनीषियों से ही गुण दोष अथवा औचित्य की महत्ता का ज्ञान सम्भव हो पाता है। आपके मार्गदर्शन को गंभीरता से लेने हेतु प्रतिबध्द हूं। आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 6:16pm

क्या मतला है ? इसका मतलब क्या हुआ ? पूरी प्रस्तुति ही असंप्रेषणीय हई है.

आप अपनी रचनाओं से भाषायी व्याकरण न निकालें भाईजी.

शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 16, 2014 at 9:49pm

आ0 सविता जी, मीना जी,शिज्जूभार्इ जी, मदन मोहन भार्इजी, जितेन्द्र भार्इजी, भण्डारी भार्र्इजी,    बिलम्ब के लिए क्षमा! गजल की सराहना के लिए आप सभी का हार्दिक आभार। भण्डारी भार्इ जी आप तो स्वयं ही गजल के मर्मज्ञ हैं, कृपया संशय को इंगित करना चाहें। ताकि उप पर विचार किया जा सके। सादर,  आप सभी को सपरिवार होलिकोत्सव की शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधार्इयां।  सादर

Comment by savitamishra on March 7, 2014 at 8:07pm

बहुत सुंदर

Comment by Madan Mohan saxena on March 7, 2014 at 5:28pm
बहुत सुंदर
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 11:47pm

बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय केवल जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 6, 2014 at 6:37pm

आदरणीय केवल भाई , शिल्प के लिहाज़ से ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ पर बात पूरी तरह समझ नही पा रहा हूँ , शायद मेरी ही कमी हो , या कहन मे कुछ कमी हो , खास तौर पर , शेर न. 1,2, और अंतिम ॥ विद्व जनो का इंतिज़ार करना उचित रहेगा ॥

Comment by Meena Pathak on March 5, 2014 at 10:00pm
Kyaa Baat hai ... Bahut khoob , Badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service