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गजल- देश सोने की चिरैया----

जब बुजुर्गों की कमी होने लगी।
गर्म खूं में सनसनी होने लगी।।

नेक है दुनियां वजह भी नेक है,
दौर कलियुग का बदी होने लगी।

धर्म में र्इमान में सच्चे सभी,
घूस-चोरी अब बड़ी होने लगी।

प्यार हमदर्दी करें नेता यहां
सारी बातें खोखली होने लगी।

सिक्ख, हिन्दू और मुस्लिम भार्इ हैं,
घर में दीवारें खड़ी होने लगी।

देश सोने की चिरैया थी कभी,
खा गए चिडि़या गमी होने लगी।

जिन्दगी आसां बहुत मुश्किल नहीं,
पाप की दुनियां बली होने लगी।

रात में गोली चली दंगा हुआ,
टूटते सपने जगी होने लगी।


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 6:50pm
आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! इस गजल को नवयुवको जिनके साथ बुजुर्ग नहीं रहते है, उनके द्वारा लिए गए अपरिपक्व निर्णयों के सम्बन्ध में अवधारित करने की कोशिश भर की है। अब कहां तक सही है, यह तो आप जैसे मनीषियों से ही गुण दोष अथवा औचित्य की महत्ता का ज्ञान सम्भव हो पाता है। आपके मार्गदर्शन को गंभीरता से लेने हेतु प्रतिबध्द हूं। आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 6:16pm

क्या मतला है ? इसका मतलब क्या हुआ ? पूरी प्रस्तुति ही असंप्रेषणीय हई है.

आप अपनी रचनाओं से भाषायी व्याकरण न निकालें भाईजी.

शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 16, 2014 at 9:49pm

आ0 सविता जी, मीना जी,शिज्जूभार्इ जी, मदन मोहन भार्इजी, जितेन्द्र भार्इजी, भण्डारी भार्र्इजी,    बिलम्ब के लिए क्षमा! गजल की सराहना के लिए आप सभी का हार्दिक आभार। भण्डारी भार्इ जी आप तो स्वयं ही गजल के मर्मज्ञ हैं, कृपया संशय को इंगित करना चाहें। ताकि उप पर विचार किया जा सके। सादर,  आप सभी को सपरिवार होलिकोत्सव की शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधार्इयां।  सादर

Comment by savitamishra on March 7, 2014 at 8:07pm

बहुत सुंदर

Comment by Madan Mohan saxena on March 7, 2014 at 5:28pm
बहुत सुंदर
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 11:47pm

बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय केवल जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 6, 2014 at 6:37pm

आदरणीय केवल भाई , शिल्प के लिहाज़ से ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ पर बात पूरी तरह समझ नही पा रहा हूँ , शायद मेरी ही कमी हो , या कहन मे कुछ कमी हो , खास तौर पर , शेर न. 1,2, और अंतिम ॥ विद्व जनो का इंतिज़ार करना उचित रहेगा ॥

Comment by Meena Pathak on March 5, 2014 at 10:00pm
Kyaa Baat hai ... Bahut khoob , Badhai

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