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चॉंद मुस्काता रहा हर रात में

तरही गजल- 2122 2122 212

आग में तप कर सही होने लगी।

प्यार में मशहूर भी होने लगी।।

जब कभी यादों के मौसम में मिली,

राज की बातें तभी होने लगी।

तुम बहारों से हॅंसीं हस्ती हुर्इं,

आँंख में घुलकर नमी होने लगी।

उम्र से लम्बी सभी राहें कठिन,

पास ही मंजिल खुशी होने लगी।

तुम नजर भी क्या मिलाओगी अभी,

शाम सी मुश्किल घड़ी होने लगी।

चॉंदनी अब चांद से मिलती नहीं,

खौफ हैं बादल गमी होने लगी।

चॉंद मुस्काता रहा हर रात में,

चॉंदनी बीती शदी होने लगी।

रात से मिलकर जुदा शबनम हुर्इ,

दूब की खातिर नमी होने लगी।

सोच कर 'सत्यम', बड़ी राहत मिली,

हर नए गम से खुशी होने लगी।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित   

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 7:13pm

आ0 अन्नपूर्णा जी, रामानी दी जी, बृजेश भार्इजी, अनिल भार्इजी व जितेन्द्र भार्इजी आप सभी का बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर, 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 10:54pm

बेहद खुबसूरत गजल आदरणीय केवल जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on March 2, 2014 at 8:46pm

चॉंद मुस्काता रहा हर रात में,

चॉंदनी बीती शदी होने लगी।....यह तो बिलकुल हटकर है......बहुत खूब............

Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 8:18am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by कल्पना रामानी on March 1, 2014 at 9:05pm

बहुत सुंदर गजल, आदरणीय केवलप्रसाद जी, बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 7:23pm

बहुत खूबसूरत  गजल , दिली दाद  कुबूल करें आ0 केवल भाई जी । 

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