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राह के कांटें हुए बलवान भी

"राह  के  कांटें  हुए  बलवान  भी"

आप की खातिर है हाजिर जान भी।
हाथ  का  पंजा  हुआ  हैरान  भी।।


कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,
आज कल भौंरे करें पहचान भी।


अब चुनावी दौर का मंजर यहां,
बढ़ रही है रैलियों की शान भी।


भुखमरी-बेकारी सिर चढ़ बोलती,
हर किसी रैली में जन वरदान भी।


खो गर्इ है शान-शौकत-आबरू,
बो रहे हैं लोभ-साजिश-धान भी।


अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर,
गिरगिटों के रंग में इंसान भी।


जिन्दगी का रास्ता मुशिकल हुआ,
राह  के  कांटें  हुए  बलवान  भी।।


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 8:34pm

आ0 मुकेश भाई जी,  आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 25, 2014 at 8:19pm

कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,
आज कल भौंरे करें पहचान भी।

बहुत बढ़िया प्रसाद जी..

बहुत खूबसूरती से आपने इस तरही ग़ज़ल को पेश किया है..वैसे तो आपने ऊपर लिख दिया है पर अगर सिर्फ़ मक़ते मे ही मिसरे को कोट करके लिख दिया जाए तो..पढ़ने वाला अपने आप समझ जाता है..

बहुत मुबारकबाद

"चिराग"

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2014 at 6:14pm

आ0 सौरभ सर जी, -- बह्र -- 2122,  2122, 212  है।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2014 at 6:09pm

आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम!  ओ0बी0ओ0 के ब्लाग पर किसी भी रचना पर आपकी टिप्पणी मेरे लिए आस्कर पुरूस्कार से कम नहीं है। रचना पर आपकी उपस्थिति ऊर्जा प्रदान करती है।  आपका हार्दिक आभार। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2014 at 9:53pm

इस ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई, भाईजी.
यह अवश्य है कि तनिक और समय इस प्रस्तुति को आपकी सबसे अच्छी प्रस्तुतियों में शुमार करवा देता. समसामयिक होने के साथ यह ग़ज़ल बहुत कुछ है.

आपने ग़ज़ल के मिसरों के वज़्न क्यों नहीं दिये भाई ? वैसे, ग़ज़ल अच्छी हुई है. पुनः हार्दिक बधाई.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 7:17pm

आ0 प्रदीप सर जी,  सादर प्रणाम!   आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 1, 2014 at 9:02pm

अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर, 
गिरगिटों के रंग में इंसान भी।

आदरणीय 

सादर 

सब बिकाऊ हैं. सही खाका वर्तमान का 

बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 1, 2014 at 7:02pm

आ0  रामानी जी व अन्नपूर्णा जी, सादर प्रणाम!  आप लोगों का बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 1, 2014 at 7:00pm

आ0 भण्डारी व जितेन्द्र भार्इ जी,   सादर प्रणाम!  आप लोगों का हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:29pm

आ0 केवल भाई जी बहुत सुंदर गजल बधाई आपको । 

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