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बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,

नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on January 4, 2014 at 9:50pm

वाह ..क्या अदायगी है 

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,....बेहद उम्दा साहब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2014 at 7:54pm

//इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,// बहुत बढ़िया वाह

//बेलगाँ// इस शब्द का मतलब समझ में नही आया

Comment by Amod Kumar Srivastava on January 4, 2014 at 7:39pm

बहुत सुंदर .... बधाई स्वीकार करें .... 

Comment by Sushil Sarna on January 4, 2014 at 6:24pm

shaandaar gazal ka hr sher jaandaar ...इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,wah bahut khoob...dilee daad kabool farmaayen

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 4, 2014 at 6:07pm

इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँकर ली

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

बहुत खुबसूरत गजल, यह शेर बहुत खास पसंद हुए , दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अरुण जी

Comment by coontee mukerji on January 4, 2014 at 4:40pm

वाह क्या अंदाज़ है....हार्दिक बधाई.अरून जी.

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