मुश्किल काम होता है
चढ़ाये रखना ,
लगातार बहुत समय तक
सजावट को ,
रह पाये कोई अगर तुम्हारे साथ
अधिक समय तक
लगातार, तो
फीकी पड़ने लगेंगी
उतरने लगेंगी
दरकने लगेंगी
परत दर परत
सजावटें
अव्यवस्थित हो जायेंगी
सारी सावधानियाँ
जाहिर होने लगेगा
असली रूप !!!
मुखौटे
चाहे आप चेहरे पे चढ़ाये हों
या
अपनी भावनाओं पर !!!!
*******************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अरुण भाई , रचना की तह तक जा कर आपने प्रतिक्रिया दी है , उसके लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!! आदरणीय दूसरे सन्देश की नौबत न आये तो ही अच्छा होता है !!!! सरलता बड़ी बात होती है !!!!!
आदारणीय बड़े भाई विजय जी , आपने रचना को गहराई से समझा आपकी प्रतिक्रिया ने रचना का मान बढ़ा दिया !!! आपका आभार !!!
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!
अव्यवस्थित हो जायेंगी
सारी सावधानियाँ
जाहिर होने लगेगा
असली रूप !!!
मुखौटे
चाहे आप चेहरे पे चढ़ाये हों
या
अपनी भावनाओं पर !!!!
एक कटु सत्य ली हुयी रचना , झूठी सहानुभूतियो को बेनकाब करती पंक्तियाँ . सच! इन्सान का असली रूप सामने आता ही आता है, चाहे उसने कितने ही मुखोटे या आडम्बर बना रखे हों, जीवन में अपनी भावनाओं के साथ, दूसरों की भावनाओं को भी समझना पड़ता है, बस समय निकल जाता है हाथों से, यही एक नुकसान हो जाता है, इस रचना पर हृदय से बधाई आदरणीय गिरिराज जी
सच कहा !
समय के साथ हर दिखावा अपना असली रूप जरूर दिखाता है !
कविता का दूसरा सन्देश ये कि एक बार सजावट कर निश्चिन्त न ओ जाया जाय ! समय समय पर लीपापोती करते रहना चाहिए ! :-))))
शब्द नहीं हैं कहने को कि कैसे इतनी सरलता से आपने इस रचना में मुझको हर नए रिश्ते की परख दे दी है।
काश मैं यह जानते हुए भी मूल सत्यों को अपना न सका।
आपका आभार, आदरणीय भाए गिरिराज जी।
मित्र अनुज गिरिराज जी
सजावट की नित्यता पर आपने जो प्रकाश डाला है , उसके प्रति रचनाकारों को सजग होना चाहिए i
बहुत सुन्दर i बधाई i
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