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प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122      2122      2122      212

.

आपकी पिछली कही मन में प्रवाहित है अभी

इसलिये तो प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी

 .

अब सदा बहती ही रहती है उपेक्षा आँखों से

मै कहाँ हूँ आपके मन में ये साबित है अभी

 .

है बड़ी उलटी समस्या रीतता अब प्रेम पर

गाँव-नगरों में हमारा प्रेम चर्चित है अभी   

 .

सारा विष जो आपने अब तक इकठ्ठा था किया

आपकी बातों में वो सारा समाहित है अभी

 .

हाँ, सलोनी धूप मे है छांव किसकी, है पता

और शासक कौन है, क्यों सोच शासित है अभी 

.

मित्र मेरे, अब सहारा है मुझे चुप्पी का बस     

भागते इस भूत की लंगोट इच्छित है अभी

 

******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on December 7, 2013 at 11:20pm

है बड़ी उलटी समस्या रीतता अब प्रेम पर

गाँव-नगरों में हमारा प्रेम चर्चित है अभी   ....अति उत्तम ! हिंदी ग़ज़ल का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया मान्यवर आपने ! बहुत बढ़िया लगा पढ़कर ! अहा 

हाँ, सलोनी धूप मे है छांव किसकी, है पता

और शासक कौन है, क्यों सोच शासित है अभी ...बढ़िया है जी बढ़िया :)

.

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 11:11pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल की  सराहना औत उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2013 at 10:42pm

अनुज/मित्र

हिंदी ग़ज़ल  के लिए बधाई i

सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 5:28pm

आदरणीय कुंती जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 5:27pm

आदरणीया मीना जी , उत्साह वर्धन और गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 5:26pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 5:25pm

आदरणीय चन्द्र शेखर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!

Comment by coontee mukerji on December 7, 2013 at 4:11pm

बहुत सुंदर गज़ल.आप को हार्दिक बधाई.

Comment by Meena Pathak on December 7, 2013 at 1:48pm

बहुत सुन्दर गज़ल आदरणीय गिरिराज जी | सादर बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2013 at 12:23pm

संशोधित होकर ग़ज़ल और निखार पा गयी बंधु

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