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'मैं' को ध्येय बनाऊँगी

कल्पना के मुक्त पर से

सीमाओं तक जाऊँगी।

दुश्वारियों से परे, निज

अस्तित्व को मैं पाऊँगी।।

पर हीन पंछी के हृदय

वेदना ने गान गाये।

बह न पाए अश्क जो भी,

वो शब्द सुर ही बन गये।

नभ सिन्धु तक सैर करके

रश्मि मोद चुन लाऊँगी।।

दुनिया के वीराने पथ

दृष्टि नहीं टिकती जिनपर।

संगीत सजायेंगे,उन

राहों से आहें चुनकर।

खुश होंगे सब पत्थर दिल,

गीत वही जब गाऊँगी।।

'मम' में परदर्द' जोड़कर

ऋण-ऋण धन बन जायेंगे।

तुष्ट बनेंगे हम दोनों

भोगी भी सुख पाएंगे।

एक दिन सुख-राशि बनकर

मिल 'अनन्त' में जाऊँगी।।

'मैं' नहीं व्यष्टि का द्योतक

साहित्य बसा है इसमें।

'मैं' की दिशा सही हो तो

संसार सजेगा सचमें।

हर 'मैं' उन्नत होने तक

'मैं को ध्येय बनाउँगी।।

-विन्दु

(मौलिक/अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 6, 2013 at 7:37am

आदरणीया वंदना जी बहुत खूबसूरत रचना है बधाई स्वीकार करें

Comment by Vindu Babu on December 6, 2013 at 7:35am

आदरणीय बागी जी आपको रचना पसंद आई  रचना  सार्थक हुई।

जी सही जाना आपने टंकण में ही त्रुटि हो गयी,अभी एडमिन जी से निवेदन करती हूँ।

प्रोफाइल फ़ोटो लगाने का प्रयास किया पर जो फ़ॉर्मेट निर्धारित है उसकी फ़ोटो मेरे पास उपलब्ध नहीं थी...फिर पर्दे के पीछे से सीखने में जो आनंद है वो सामने से कहाँ आदरणीय!

खैर, मैं शीघ्र ही आपके आदेश का पालन करूंगी।

आपका बहुत आभार।

सादर

Comment by ram shiromani pathak on December 6, 2013 at 1:03am

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया वन्दना जी … हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय गणेश जी से सहमतं हूँ ..... सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 6, 2013 at 12:24am

 सुंदर शब्दों से , सकारात्मक पक्ष ली हुयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया वंदना जी,

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 5:13pm

आदरणीया वंदना बहन बहुत ही सुन्दर रचना भाव पक्ष बहुत ही आकर्षित करता है इस सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें

Comment by वेदिका on December 5, 2013 at 1:50pm

बढ़िया रचना हुयी है, उच्च कथ्य और भाव समाहित है| एक प्रश्न दिमाग मे स्ट्राइक करता है, कल्पना तो असीम होती है न?

बधाई आदरणीया वंदना जी!

Comment by ram shiromani pathak on December 5, 2013 at 12:27am

आदरणीया वन्दना जी ,सुन्दर रचना /////// बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 6:11pm

आदरणीया वन्दना जी , सुंदर भावों से रची बसी रचना के लिये आपको बधाई !!!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 2:01pm

वंदना जी

फूल बहुत अच्छे है i गुलदस्ता सजाने में और श्रम अपेक्षित है i

मेरी शुभ कामनाये  i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 4, 2013 at 1:51pm

वंदना जी, रचना में निहित भाव बहुत ही सुन्दर हैं, शिल्प स्तर पर कुछ और समय और धैर्य कि मांग रचना करती है, बहरहाल रचना पसंद आयी | दुशारियों ? मैं नहीं समझ सका शायद टंकण त्रुटि है | बधाई इस प्रयास पर |

अंत में :- अब आप प्रोफाइल फ़ोटो लगा ही लीजिये |

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