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!!!! काले काले वर्षा वाले !!!! अतुकांत !!!!

सावन के बादल

काले काले ,

वर्षा वाले !

क्षुधित मानव की प्यास

बुझाने वाले ,

अपना बूँद बूँद दे कर भी

ज्यों दिख रहे ,

अब

शांत , सुखी , 

संतुष्ट, संतृप्त !!

सब कुछ दे कर

पहले से और अधिक

समृद्ध  !!!

जिनको दिया

उनकी

हरियाली से आनन्दित !!!!

बस !

उन्ही की खुशियों से

सम्बन्धित !!!!

ऐसा होता है ,

एक पिता , जब होता है

वृद्ध !!!!!!!

********************

!!!! ऐसे हर एक पिता को

सादर नमन के साथ  !!!!

********************

गिरिराज भंडारी

भिलाई

******

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 4, 2013 at 3:46pm

बहुत ही प्यारी रचना हुई है आदरणीय, मुझे लगता है ...अंतिम दो पक्तियों के बगैर भी रचना खुद मे परिपूर्ण है, बधाई इस प्रस्तुति पर |

Comment by Shyam Narain Verma on December 4, 2013 at 11:16am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.........

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 4, 2013 at 11:01am

आदरणीय गिरिराज सर आपकी लेखनी पूरे वेग से प्रवाहित है और एक के बाद एक बेहतरीन रचनायें निकल रही हैं इस कविता के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 10:55am

मित्रानुज

परकाजहि देहि को धारयो फिरयो  पर्जन्य यथारथ  ह्वे  बरसो i ---घनानंद

बादल तो सब कुछ लुटा कर रीत जाता है  पर  उससे जो लाभान्वित होते है

वे क्या बादल की कोई सुध लेते है i

पर आपकी कविता से लगता है आप

सुब कुछ लुटा कर भी आत्मतुष्ट है i  ईश्वर ऐसा जब्त सबको दे i बधाई हो i

Comment by वेदिका on December 4, 2013 at 10:31am

!!!! ऐसे हर एक पिता को....... मे यदि //पिता को// लिखा जाये तो शायद ज्यादा प्रभावी वैसे ये मेरा व्यक्तिगत मत है| पिता को नमन करती लेखनी पर कोटि कोटि शुभकामनायें स्वीकारिए!! 

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