- दोहावली -
संग हरि किये हरि हुये, दानव ,दानव संग
किंतु न मानव बन सके, कर मानव के संग
कह सुन खाली मन करें, बचे न कोई बात ।
मन को उजला कीजिये, जैसे उजली रात ।।
लघुता को गुरुता कहे,लघुता की रख प्यास ।
गुरुता फिर आये नहीं, मत करना तू आस ।।
ढाल जिधर है बह गये, ये मुर्दों का ढंग ।
जीवित पहले परख के, तब होवत है संग ।।
मन पंछी को बांध रख, डोरी एक बनाय ।
उछले कूदे खींच दे , वापस घर में आय ।।
मैं को सबसे जोड़ मत , अलग न जुड़ के होय ।
दुख की जड़ फैलाय जो, वो जीवन भर रोय ।।
तन का घाव दिखे मगर,दिखे न मन का पीर ।
बाहर से है ठीक सब , अन्दर से गम्भीर ।।
क्यों सहते बैठे रहें, पीठ करे जो घात ।
अब अंतिम परिणाम तक ,जारी हो प्रतिघात ।।
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू भाई , सनातनी छन्द मे केवल दोहा ही थोडा समझ पाया हूँ , सो प्रयास करते रहता हूँ !!! आपको दोहो भाव पसन्द आये , आपको बहुत शुक्रिया !!!!
नैतिक और ज्ञानवर्धक दोहों के लिए हार्दिक बधाई
वाह आदरणीय गिरिराज सर सनातनी छंद में आपको प्रयास करते हुये अच्छा लगा शिल्प की तो मुझे जानकारी नही है लेकिन भाव अच्छे लगे कोशिश करते रहें
आदरणीय सुशील सरन भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया !!!!! आदरणीय आपने मेरा नाम गलत लिख दिया है !!!!!
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , सच है , मन मे संतोष है भाई जी , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!
आदरणीय श्याम भाई , दोहों की सरहाना के लिये आपका आभार !!!!!
आदरणीया कुंती जी ,सराहना और उत्साह वर्धन वर्धन के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!
आदरणीय बडे भाई अखिलेश जी , दोहों ही सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!!
aa.Brijesh jee badee hee manmohak aur sandeshaatmak dohavali prastut kee hai aapne....hr doha apne men poorn aur sandeshprerak hai...ati sundr...haardik badhaaee
मित्रानुज
क्या सुन्दर दोहे है i
ज्ञानवर्धक भी है i
कहिये मेरे मीत प्रिय , भंडारी गिरिराज i
ऐसे दोहे विरच कर , कैसा लगता आज ? धन्यवाद मित्र i
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