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मोहब्बत आग का दरिया

मोहब्बत आग का दरिया भरोसा तोड़ देती है ।
खुदी आधी जलाकर ही भला क्यों छोड़ देती है ।

छलावा इस से बढ़कर ना कहीं देखा ज़माने में ।
समंदर गम के भर लाये ख़ुशी कि बूँद पाने में ।

लिए नादान सी हसरत किसी मासूम से दिल को ,
ख़ुशी का आसरा देकर ग़मों से जोड़ देती है ।

अच्छा था खुदी मेरी ये खुद में ही समा लेती ।
कहीं अपनी पनाहों में ये मुझको भी छुपा लेती ।

लुटा बैठा ये दीवाना कहाँ अपना मकां ढूढे ,
ये सबकुछ छीनकर मेरा मुझे क्यों छोड़ देती है ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 12:29pm

अच्छी प्रस्तुति है आ0 नीरज भाई...... बहुत बहुत बधाई....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 4:32pm

BHAROSA BANAY RAKHEN MOHABBAT HO YA KAVTA. GOOD WISHS.

Comment by वीनस केसरी on November 7, 2013 at 12:50am

सुन्दर पंक्तियाँ है  ,,, ग़ज़ल के शिल्प पर साध लें तो सोने पर सुहागा हो जाये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2013 at 8:55pm

आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर भावों और सुन्दर बातों से रची रचना के लिये आपको दिली बधाई !!!! 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 1:16pm

आदरणीय नीरज जी इश्क में घायल दिल से निकली बढ़िया रचना प्रयास अच्छा है और बेहतर हो सकता था खैर प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.

इस्लाह: यही ओ बी ओ पर पाठशाला ग्रुप में ग़ज़ल का अनुसरण करें यदि ग़ज़ल सीखना चाहते हैं.

Comment by ram shiromani pathak on November 6, 2013 at 9:58am

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति   ,,,,,,,बहुत  बहुत बधाई भाई नीरज  जी। ।सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 6, 2013 at 9:38am

वाह भाई नीरज जी आपकी इस रचना पर मैं बस यही कहूँगा कि-

शिकस्ता दिल कोई आशिक कि जीना छोड़ दे गर
सुखन के तो समंदर से यूँ मोती कौन लाये

बस सुखन के लिये थोड़ा शिल्प पर भी नज़रे इनायत करें

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