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भई चंदा निकल रहा होगा

जहाँ पर्वत पिघल रहा होगा
चरागे इश्क जल रहा होगा

परिंदे लौटने लगे घर को
चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा

बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये
कोई बच्चा मचल रहा होगा

गलितयों से जो दोस्ती कर ले
वो अपने हाथ मल रहा होगा

नयन हैं तिश्नगी भरे उसके
कोई तो ख्वाब पल रहा होगा

भरे है दर्द वो मगर न कहे
उसे अपना ही छल रहा होगा

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा

जले जो दीप आँधियों में भी
वो गर्दिशों को खल रहा होगा  

संदीप पटेल "दीप"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 757

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Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:32pm

परिंदे लौटने लगे घर को
चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा....... वाह.....

बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये
कोई बच्चा मचल रहा होगा........ क्या बात है....

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा.......... वाह करवाचौथ............. बहुत ही बढ़िया गज़ल कही है आ0 संदीप भाई...... बधाई हो आपको....

Comment by वेदिका on October 24, 2013 at 8:53am

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा,, वाह! इस शेअर तो करवाचौथ मना लिया| बहुत बढ़िया गज़ल काही आपने आ0 संदीप भाई!

एक बात कहना चाहती हूँ, आप कार्यकारिणी के सदस्य है| यदि आप ही गज़ल के साथ बहर संलग्न नहीं करेगे तो हमारे नए रचनाकारों को कैसे प्रेरणा मिलेगी| 

सादर !!   

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 8:33am

बधाई आदरणीय ...  बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये .. इसमें थोडा अटकाव प्रतीत हो रहा है.
सादर  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 10:53pm

भरे है दर्द वो मगर न कहे
उसे अपना ही छल रहा होग......वाह! यह शेर बहुत पसंद आया

बहुत बढ़िया गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय संदीप जी

Comment by बृजेश नीरज on October 23, 2013 at 10:22pm

उम्दा ग़ज़ल भाई जी! आपको बहुत बहुत बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 8:30pm

आदरणीय भाई संदीप जी  बहुत ही उम्दा ग़ज़ल,हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by Meena Pathak on October 23, 2013 at 7:12pm

सुन्दर गज़ल हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० संदीप जी 

Comment by annapurna bajpai on October 23, 2013 at 6:30pm

आ0 संदीप जी सुंदर गजल बहुत बधाई आपको । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 23, 2013 at 4:17pm

आदरणीय प्रिय मित्रवर वाह दिल खुश कर दिया आपने बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हरेक शेर लाजवाब ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by विजय मिश्र on October 23, 2013 at 3:55pm
समय से सुंदर बात रखी संदीपजी , बधाई

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