For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" अम्मा ने कहा था"( लघु कथा )

उषा आज फिर देर से आई । मै कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी । वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक  आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे । कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......” बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच मे ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है , अम्मा ने कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना , वो  ही  तुम्हारा देवता है । और वो कड़वी सी हंसी हंस कर चल दी ।   

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on August 24, 2013 at 4:21pm
इस कथा की प्रसंशा करूँ तो मन का भाव बिगड़ता है , आशय के दृष्टिकोण से अतृप्त करने वाली रचना है .
Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:50am

अच्छी लघुकथा! अब भी भारतीय परिवारों में यही स्थिति है। भारतीय परिवेश का यह पहलू बहुत दुखद है।
इस संदेश को इतनी सुन्दरता से प्रकट करने के लिए आपको हार्दिक बधाई!
सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:10am
अन्नपूर्णा जी , बीते समय की याद दिलाती एक अच्छी लघुकथा कथा !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:05am
अच्छी लघु कथा पर ,बहुत पुराने समय को याद कर आज लिखी लघुकथा है !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2013 at 10:03am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी नारियों की ये सोच और अंधानुसरण ही नारियों को पतन के गर्त में धकेल देती हैं पर वो वक़्त पुराना था जिसमे पति को देवता का दर्जा  और नारी को देवी का दर्जा  दिया जाता था आज वक़्त को देखते हुए वैचारिकता में भी बदलाव आया है नारियों ने भी अपनी इस सोच को बदल लिया है किन्तु कुछ तबको में अभी भी बहुत कुछ बदलना बाकी है धीरे-धीरे स्थिति सुधरेगी आदरणीय योगराज जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 11:35pm
आदरणीय हेमंत जी आपका हार्दिक आभार ।
Comment by hemant sharma on August 23, 2013 at 11:20pm
ये सत्य है कि आजकल ऐसा देखने मे नहिं आता लेकिन कथा का निहितार्थ विचारणीय है. नारी आज भी उतनी ही तुच्य वस्तु है एक पुरुष के लिये जितनी की वह रामायण और महाभारत के काल मे थी. एक साधन की तरह इस्तमाल करने का आदी हो चुका है, उसे बार बार रौंदकर वह अपने आप को विश्वास दिलाता है कि वह अब भी वैसा हि है जैसा कि सदियों पहले था. सार्थक प्रयास के लिये बधाई. सादर .
Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 10:48pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी , केवल भाई जी  एवं आदरणीया विनीता जी , गीतिका जी आपका हार्दिक आभार ।

Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 10:41pm
आदरणीय प्रभाकर जी मैंने जिस नारी का चित्रण किया है वह गाँव की भोली भाली नारी है जिसको बस इतना ही समझ आया कि अम्मा ने जो कहा वह ही सही है । ........ यह मेरा पक्ष है ।
आपकी बात अपनी जगह एकदम सही है ऐसा आज के युग मे कम ही होता है । और मुझे अपनी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर बहुत अच्छा लगा । आपसे सदैव मार्ग दर्शन कि अभिलाषा मुझे रहेगी । सादर ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 23, 2013 at 9:57pm

//नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है//

यह कुछ ज्यादा नहीं हो गया अन्नपूर्णा जी ? माना कि हमारे यहाँ पति को देवता (तथाकथित) माना जाता है लेकिन किसी को मार पिटाई को देवता का प्रसाद कहते मैंने कहीं न सुना न देखा। मेरी नज़र में ये ही लघुकथा की कमज़ोर कड़ी है। अगर यही लघुकथा मैं कहता तो उस कहानी में चेहरे और शरीर पर चोटों के निशान देखकर उसकी माँ पूछती कि क्या हुआ, तब ऊषा बताती कि जिस पति को परमेश्वर मानने की नसीहत उसने दी थी यह चोटें उसी देवता का प्रसाद हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
20 minutes ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
48 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
1 hour ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
1 hour ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service