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रहीम - यार! अपन लोग की लाइफ का कोई गेरन्टी नहीं।
राम - ये सेठ लोग अक्खी दुनिया के हिस्से की गेरन्टी खुद ही ले लेना चाहता है।
-हाँ यार! देख कल अपने सेठ की गाड़ी क्या ठुकी कि बीमा का केस दायर कर दिया। अब साल्ला 4-5 लाख तो मिल ही जायेगा उसको।
-लेकिन तुझे मालूम है? कल अपन के मोहल्ले में अश्फाक मोची का इकलौता लड़का, बेचारा भूख से तड़प कर मर गया।
-काश अपन लोग के भूख भी का बीमा होता यार, तो भूख लगने या मरने पर कुछ तो मिल जाता!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 8, 2013 at 5:30pm
भाई अमन कुमार जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार। सच कहा आपने गरीबों की भूख केवल 5 रूपये में मिटती है। हमारe पप्पू के अनुसार तो गरीबी मानसिक होती है। ये क्या जाने गरीबी क्या होती?
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 8, 2013 at 5:21pm
सच बताता हूँ बहुत ही डरते- डरते यह लघुकथा पोस्ट किया था। आप सब गुरुजनों ने रचना को पढ़ा, सराहा, मुझे आत्मिक बल मिला।
तथापि अभी भी मैं इससे संतुष्ट नहीं हूँ। अपने स्तर से संशोधन, परिमार्जन का प्रयास कर रहा हूँ। यदि आप सब सुधी गुरुजनों को रचना में कोई भी दोष, कमी नजर आये तो कृपा कर बताने का कष्ट कीजियेगा।
सादर
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2013 at 4:55pm

बेहद सुन्दर लघुकथा आदरणीय भाई जी बारीकी से बयां की है आपने गरीबी और विवशता को. हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 8, 2013 at 3:42pm

विनय जी आपने मर्मस्पर्शी कथा सुनाई है यह आज की कड़वी सच्चाई है, अच्छा लिखा है आपने बधाई,

Comment by vijay nikore on August 8, 2013 at 11:58am

आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी:

 

आपकी लघु कथा अच्छी लगी... इससे उद्भावित भाव मैंने सामाजिक सरोकार में लिखे हैं।

आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 8, 2013 at 10:41am

सुन्दर लघु कथा, हार्दिक बधाई श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी "विनय" जी इससे भी बढ़कर बात है भूख का बीमा भी कराएगा कौन,

जब खाने को ही पैसे नहीं तो बीमा की प्रीमियम कौन भरेगा

Comment by AVINASH S BAGDE on August 8, 2013 at 10:22am

 भूख भी का बीमा... धारदार!

हार्दिक बधाई विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 8, 2013 at 9:37am

सन्देशप्रद रचना पर,हार्दिक बधाई आदरणीय विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी जी

Comment by seema agrawal on August 7, 2013 at 10:41pm

मार्मिक .............

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 7, 2013 at 7:29pm

बहुत तेज धारदार! गागर में सागर!

कृपया ध्यान दे...

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