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चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में - वीनस

एक ताज़ा ग़ज़ल ...

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में

 

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में

 

खून उगलूँ तो उनको चैन आए

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में


ख़ाब में भी न सोच सकते थे

लिख के भेजा है उसने जो खत में


मैंने रोका था, ख़ाक माने आप

और पड़िए हमारी सुहबत में

जेह्न से वो नहीं उतरता है

हर घड़ी अब रहूँ इबादत में


ठोकरें खाऊंगा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?



फाइलातुन मफ़ाइलुन फैलुन 
मौलिक व अप्रकाशित
- वीनस

Views: 1341

Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on July 4, 2013 at 10:43pm

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में

नमस्कार वीनस जी .. कुछ अलग ही अंदाज है  इस गजल में ..बिलकुल शहादत वाली.. :))) बहुत -२ बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 6:16pm

शिकायत करने का क्या अंदाज़ है.....दाद कूबूल करें.वीनस जी.

Comment by ram shiromani pathak on July 4, 2013 at 5:41pm

आदरणीय भाई वीनस जी  लगता है आप बुरा मान गए ..मैंने पहले ही क्षमा मांग ली है आपसे //कमेंट डिलीट कर देता हूँ //

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 5:40pm

वीनस भाई,

पढ़कर नहीं लगता के आपकी कही ग़ज़ल है. फ़साहत की कमी स्पष्ट नज़र आती है.

रवानी भी नहीं आ रही. ख्याल में दम है. मेरे विचार से कोई अन्य बहर

 लेते तो मज़ा आ जाता.

मैंने बाँधने की कोशिश की है देखें कैसी लगती है--

 

21 2   1222   1222   1222

चुप ही यहाँ बैठे रहें हम बस मुरव्वत में

मेरी जान भी जायेगी ऐसी ही शराफत में

 

सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2013 at 5:27pm
""किसको मालूम था कि ये होगा
!
खाएँगे चोटयूँ मुहब्बत में""....वाह! बहुत खूब, शानदार शेअर....,""पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों

क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में,,

खून उगलूँ तो उनको चैन आए,

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में,,......आदरणीय..वीनस जी, ये तो कमाल के शेअर, गजब..वीनस जी, ""मैंने रोका था, ख़ाक माने आप

और पड़िए हमारी सुहबत में,,......वाह! आदरणीय..क्या खूब कह दिया..'मना करने पर भी, न माने....सुहबत कर ली ' "'ठोकरें खाऊं गा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?....आदरणीय..वीनस जी, सच कमाल की गजल...."दिल की गहराइयों से दाद कुबूल कीजीऐगा
Comment by वीनस केसरी on July 4, 2013 at 5:26pm

राम शिरोमणि भाई,
कोई रचनाकार अपनी रचना पर ऐसी टिप्पणी नहीं चाहता जिसको पढ़ कर उसे समझ न आये कि वो बाल नोचे या छाती पीटे 
खैर अभी आपको ये समझने में वक्त लगने वाला है 

Comment by ram shiromani pathak on July 4, 2013 at 5:01pm

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में////कलयुग चल रहा है भाई वीनस जी 

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में/////////////मार्केट में  बहुत सारी दवाएं है भाई ///

 

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों 
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में////भाई ये तो आप ही बता सकते  है/// 

 

खून उगलूँ तो उनको चैन आए

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में//////वो क्या खून उगलेगा भाई जिसके शरीर में खून ही न हो ///

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में/////भाई और भी आप्शन है ///इत्ती जल्दी मरने की बात ////

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब 
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में////////हो सकता है भाई कोई टेक्नीकल समस्या हो //

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में///////अब क्या कहूँ इसपे बहुत संतोषी है आप ///


ख़ाब में भी न सोच सकते थे

लिख के भेजा है उसने जो खत में///ऐसा क्या लिखा था भाई ///


मैंने रोका था, ख़ाक माने आप
 
और पड़िए हमारी सुहबत में///भाई रुकने वाला आज के ज़माने में पीछे रहा जाता है 

जेह्न से वो नहीं उतरता है

हर घड़ी अब रहूँ इबादत में///***********************


ठोकरें खाऊंगा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?//////?????हरी ॐ 

आदरणीय  भाई वीनस जी मुझे बहुत ही मज़ा आया और अच्छा लगा ///बहुत बड़ी वाली बधाई आपको /// थोड़ी सी मस्ती की है मैंने यदि बुरा लगे तो माफ कर दीजियेगा ////सादर

Comment by Neeraj Nishchal on July 4, 2013 at 2:52pm

जनाब केसरी जी बात कुछ भी हो पर ग़ज़ल
के बादशाह तो आप ही हो रखे हैं ....

नाम उन तक पहुँच गया मेरा
अब तो रक्खा ही क्या है शोहरत में......
क्या बात कही ...........बहुत खूब

Comment by वेदिका on July 4, 2013 at 1:56pm

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में ,,, जानलेवा शेअर वाह :))

दिली दाद कुबुलिये!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 12:36pm

अय हय हय !..  ये अंदाज़, ये तेवर ? भाई, बढिया है..!!.. :-))))

इस महीनी को क्या कहूँ !  आपने थोड़ा चौंकाया है वीनस भाई. 

यों ही चौंकाते रहिये.

दाद दाद दाद..

इन अश्आर पर तो फिर-फिर आया --

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं
मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

ग़ज़ब !

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