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बर्तन की जाली में एक लोटा और कुछ चम्मच थे | सारे चम्मच लोटा को दुनिया का सबसे अच्छा बर्तन मानते थे, उसकी जय-जयकार करते थे, लोटा हमेशा उनको चमक - दमक की दुनिया से बचने नसीहतें देता था, हमेशा उनको बताता था कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी दिखती है, चम्मचों ! परदे के पीछे का खेल देखने की कोशिश किया करो, सच्चाई वहाँ छुपी होती है, बहुत लोग तुमको ऐसी नकली दुनिया में घसीटने की कोशिश करेंगे ऐसे लोगों से दूर रहो,,, और भी जाने क्या क्या .....
किसी ने लोटा को जाली से बाहर निकला और किचन के टाईल्स लगे चमकते दमकते फर्श पर रख दिया,  लोटा लुढक गया ..... चम्मच बहुत दुखी हैं

(नोट - चम्मच कभी स्कूल नहीं गये हैं इसलिए उनको कहावतों के विषय में कोई जानकारी नहीं है)

- वीनस केसरी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 1:01am

आदरणीया कल्पना जी आपका तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ

Comment by कल्पना रामानी on July 24, 2013 at 9:35am

वाह,वाह! वीनस जी लघुकथा में भी इतने सुंदर बिम्ब!  आपकी कलम का जादू देखकर अभिभूत हूँ। बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by वीनस केसरी on July 19, 2013 at 5:36pm

ये तो चम्मच को रखने के बाद पता चलेगा....
जय हो जय हो
शुभ्रांशु भाई जिंदाबाद ... बहुत सटीक बात कही

मगर चम्मचो के फिसलने पर शायद उतना हो हल्ला नहीं मचता और कोई दुखी भी नहीं होता,
नहीं तो इसके लिए भी कोई कहावत जरूर होती ...
आखिर हम सब पढ़े लिखे हैं और कहावतें भी जानते हैं .. उनमें चम्मचों का कोई जिक्र नहीं आता

Comment by Shubhranshu Pandey on July 19, 2013 at 1:56pm

क्या किसी चम्मच ने लोटे को लुढकने से रोकने के लिये उचकुन का काम नहीं किया???? या फ़िर ये किचन की जमीन ही इतनी चिकनी है कि सब कुछ फ़िसलने लगता है.....ये तो चम्मच को रखने के बाद पता चलेगा....

बहुत खूब बिम्बो से तो पूरी आलमरी भर गयी...वाह 

सादर...

Comment by वीनस केसरी on July 18, 2013 at 11:54pm

हार्दिक आभार जीतेन्द्र जी

Comment by वीनस केसरी on July 18, 2013 at 11:54pm

डॉ. प्राची जी
आपने चम्मचों के दुःख को महसूस किया यही मेरे लेखन की सार्थकता है ...
जिस अपार कष्ट से चम्मच गुज़र रहे हैं उसे महसूस करके ही मैंने यह कथा लिखी है ...

Comment by वीनस केसरी on July 18, 2013 at 11:52pm

बृजेश जी,
आपने तो मालामाल कर दिया ... :)))))))))))))
हार्दिक आभारी हूँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 7:24pm

आदरणीय..वीनस जी, व्यंगात्मक लघु कथा पर हार्दिक बधाई


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Comment by Dr.Prachi Singh on July 18, 2013 at 2:00pm

इंगितों में लघु कथा को पढ़ कर मज़ा आ गया..

लोटा चमकते फर्श पर लुढक गया...बेचारे चमचे :((( काश पड़े लिखे होते तो कहावतें तो जानते 

बहुत सुन्दर लघुकथा वीनस जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 1:32pm

वीनस जी, मैं तो लोटे के आस पास घुमती रह गयी और चम्मच मेरे पीछे पीछे और किचन का शेल्फ खाली.

सादर

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