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खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !
मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!

सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !
धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!

मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !
रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!

लगे लंकिनी सा मुझे ,उसका भद्दा फेस !
दिन में कितनी बार वॊ,बदले अपना भेष !!

अब तो देखो हद हुई ,झेलूँ कितनी त्रास
घर आते सुनना पड़ा ,करना है उपवास !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 11:51am

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी //स्नेह यूँ ही बनाए रखे ///पिट पिटाकर आया तो स्नेह ही तो काम आयेगा **हहहह हाहा //प्रणाम सहित हार्दिक आभार /// सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 11:47am

हार्दिक आभार आदरणीय रविकर जी //सादर 

Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 11:45am

घरेलं हिंसा का कानून है राम भैया … सचेत होइये :))))))) और एक अच्छी सलाह ऑफिस से खाना खा के आया कीजिये :)))

और हम सबकी सुहानुभूति आपके साथ है राम भैया :)))

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 11:36am

दीवानों का प्रेम में, ऐसा देखो हाल

पछतायें कुछ साल में, नोचें अपने बाल.

हाहाहा हाहाहा - कैसी मुसीबत गले लग लिए भाई. सुन्दर हास्य प्रद दोहे अनुज, बधाई स्वीकारें.

Comment by बसंत नेमा on June 26, 2013 at 11:35am

हा हा.. बहुत हास्यपद ...दोहे बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 11:13am
आदरणीय..राम शिरोमणी जी, हास्यप्रद रचना के लिए शुभकामनाऐं

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 10:47am

जीवन की शुरुआत है, तिस पर इतनी ताप

भगवन  ना दे ज़िन्दग़ी, जैसी  जीते  आप .......   :-)))))))))))))

शुभकामनाएँ

लंकिनी सा  = लंकिनी सी

Comment by रविकर on June 26, 2013 at 9:57am

ईश्वर आपकी भी रक्षा करे-

बीबी से लेना नहीं, मोल कभी भी बैर |
पूछ करीबी से किसी, नहीं बैर से खैर ||

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