आत्मा देखो मर गयी ,ह्रदय पाषाण हुआ !
मानवता मार चुके ,दिखते कसाई है !!
लूट पाट चोरी डाका ,इनका है काम यही !
लोगों का निचोड़ें खून ,चाटते मलाई हैं !!
भुखमरी से मरते,लोग बिलखाते जहाँ !
लाज शर्म पी चुके हैं ,भेजते दवाई हैं !!
ऐसे पापियों से कभी ,स्नेह की ना आस रखो !
दूर रहने में अब ,आपकी भलाई है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
hardik aabhar adarneey ashutosh ji ..punah vichaar karta hun//saadar
bahut sunder raam ji kintu aatmaa laxman nirjan sneh jaise shab d ghanaaksharee me prayog nahi ho saktey......is chhand me pravaah poornatah bhanga hai punah likhein
हार्दिक आभार भाई जीतेन्द्र जी //
हार्दिक आभार भाई हरीश जी //
सुन्दर रचना.........
हार्दिक आभार आदरणीया गीतिका जी //स्नेह यूँ ही बनाए रखें //सादर
सही कहा आपने राम भैया!!
लेकिन क्या दूरी रखे, जब इनका चयन हमे ही करना है :((
नेताओ की सही परिभाषा देने की हिम्मत पे बधाई बधाई!!
हार्दिक आभार आदरणीय रविकर जी //सादर
बढ़िया घनाक्षरी-
सादर-बधाइयां
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