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जिंदगी
दर्द है या गम,
कि है नीरस सावन,
या कागज कोरा..
जाती हुयी शाम को ..
आती हुयी रात को ..
खिलखिलाती वो हंसी को,
पंक्षियों के कोलाहल को...
उसको है विश्वास
आएगा फिर सुप्रभात ..
होगी हर तरफ रौशनी ..
न होगी कोई परेशानी ..
जिंदगी है ..
बस यही  विश्वास .. विश्वास.. विशवस ..



" मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2013 at 8:30pm

जींदगी के रंजोगम में ख़ुशी की सहर के विश्वास को बलवती करती सुन्दर रचना, किन्तु कई जगह लगा इसे जबरदस्ती खिंच कर लंबा करें का प्रयास किया है.सादर 

Comment by vijay nikore on May 29, 2013 at 3:04am

आदरणीय आमोद जी:

 

//जिंदगी
दर्द है या गम,
कि है नीरस सावन,
या कागज कोरा.. //

 

भाव अच्छे लगे। बधाई।

सादर,

विजय

Comment by coontee mukerji on May 28, 2013 at 1:33pm

अमोद जी , आपकी हर पंक्तियों में जिंदगी की अनेक सवाल छिपी हुई है , अगर आप नये लेखक है तो अपना जज्बा  बनाए रखियेगा  , आपमें संवेदनशीलता है . बहुत आगे बढ़ेंगे..........अपने भावों को और स्पष्ट करते हुए विस्तार देने का प्रयत्न  करेंगे तो रचना बहुत ही उत्कृष्ट हो जाऐगे ................./सादर /   कुंती .

Comment by aman kumar on May 28, 2013 at 12:10pm

बहुत सुन्दर रचना …..बधाई........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2013 at 11:28am

ज़िंदगी के प्रति सकारात्मक नज़रिए से पगी सुन्दर भावाभिव्यक्ति..के लिए हार्दिक बधाई आ० आमोद जी 

लेकिन कुछ अस्पष्टता रह गयी शायद..

खिलखिलाती वो हंसी को,...........यहाँ वो मुझे स्पष्ट नहीं हुआ 
पंक्षियों के कोलाहल को...

सादर.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 27, 2013 at 10:53pm

जिंदगी के प्रति एक सुखद विश्वास झलक रहा है
बढ़िया कविता भाई अमोद जी !

Comment by Abhinav Arun on May 27, 2013 at 9:30pm

अच्छे भाव विचारपरक रचना श्री आमोद जी ! बधाई !! 

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