For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amod Kumar Srivastava's Blog (49)

संबंध

"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,

फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....

चरागों का धुआं कुछ कह गया,

जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,

बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...

रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,

जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,

गेंदे जल उठेंगे,

लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़ जाएगी ...

तुलसी के पत्ते की ओस में, तुम धूप को ओढ़ लेना,

जब मेरी याद तुम्हारी पलकों में छलक उठेगी,

वह रिश्ता भी बह उठेगा,

जो कभी ठहरा… Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on October 10, 2024 at 2:37pm — No Comments

पच्चईयाँ ( नाग पंचमी )

तीन दिन पहले से ही 

सच कहूँ तो एक हफ्ते पहले से ही 

पच्चईयाँ (नाग पंचमी) का 

इंतजार रहता था .... 

एक एक दिन किसी तरह 

से काटते हुये 

आखिर, पच्चईयाँ आ ही जाती थी 

पच्चईयाँ वाले दिन 

सुबह ही सुबह 

अम्मा पूरा घर 

धोती थी, हम सब को कपड़े 

पहनाती थी 

सुबह सुबह ही 

गली मे 

छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो 

कहते हुये बच्चे नाग बाबा 

की फोटो बेचते थे 

हम वो…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 27, 2015 at 7:00am — 6 Comments

गर्मी बहुत है

सुनो, 

गर्मी बहुत है 

अपने अहसासों की हवा 

को जरा और बहने दो 

यादों के पसीनों को 

और सूखने दो 

सुनो, 

गर्मी बहुत है 

गुलमोहर के फूलों 

से सड़कें पटी पड़ी हैं 

ये लाल रंग 

फूल का 

सूरज का 

अच्छा लगता है 

अपने प्यार की बरसात को 

बरसने दो 

बहुत प्यासी है धरती 

बहुत प्यासा है मन 

भीग जाने दो 

डूब जाने दो 

सुनो,

गर्मी बहुत है .... 

Added by Amod Kumar Srivastava on June 25, 2015 at 7:20am — 5 Comments

खेल और उसका खेला

 शाम हो रही है 

सूरज का तेज अब 

मध्यम होता जा रहा है 

शाम और खेल 

का बड़ा अनूठा 

सायोंग है 

अब बस याद ही है 

खेल और उसका खेला की 

एक खेल था 

ऊंच-नीच 

समान्यतः यह खेल घर

के आँगन मे ही 

खेलते थे, चबूतरे पर 

नाली की पगडंडियों पर 

हम सब ऊपर रहते थे 

और चोर नीचे 

हमे अपनी जगह बदलनी होती थी

और चोर को हमे छूना होता था 

अगर छु लिया तो 

चोर हमे बनना होता था 

बड़ा…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 19, 2015 at 8:43pm — 4 Comments

याद मे

हम छोटे छोटे थे 

जब माँ 

कोयले की राख़ से 

गोले बनाती थी 

हम भी बैठे बैठे 

गोले बनाते थे 

ये वाला मेरा 

ये वाला तेरा 

मेरा गोला ज्यादा मोटा 

तेरा वाला पतला गोला 

धूप मे गोले 

फैला दिये जाते 

सूरज अपनी तपन से 

हवा अपने वेग से 

गोले को सूखा देते 

शाम को अम्मा 

उन्हे उठाती 

तब भी हम लड़ते 

ये तेरा वाला 

ये मेरा वाला 

अंगीठी मे एक एक करके 

गोले जलाये…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2015 at 1:30pm — 2 Comments

ओ-हो मौसम बदल गया है

फिर चल पड़ी है 

दिन मे तेज अंधड़ 

चिलचिलाती धूप 

और उसमे गुलमोहर के फूल 

लंबी सड़कों के दोनों और 

इकठ्ठा होता पत्तियों का मलबा 

और हवा से उड़ते हुये 

उनका सरसराना .... 

पलाश का फूल भी खिल रहा है 

ओ-हो मौसम बदल रहा है .... 

सुनो ... 

मेरी यादों की रजईयों 

को थोड़ी धूप दिखा देना 

और फिर सहेज कर रख देना 

जब ठंड आएगी 

रिश्तों की गर्माहट के लिए 

निकाल लेना फिर से .... रज़ाई 

लक्ष्मण…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on March 11, 2015 at 9:07pm — 9 Comments

कारवां देखते रहे

उम्मीद तो 

मुझे अपने आप से भी थी 

उम्मीद तो 

मुझे अपनों से भी थी ... 

सोचता तो 

अपने के लिए भी था 

सोचता तो 

दूसरों के लिए भी था 

सुधार की गुंजाईश 

अपने आप से भी थी 

सुधार की गुंजाईश 

दूसरों से भी थी 

इन्हीं ... 

उहापाहो में

सफर काटता रहा ... 

जब उम्मीद 

अपनी पूरी नहीं हुयी 

सोच अपनी न रही 

सुधार खुद को न पाया 

तो शिकायत 

अब किससे 

और…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on February 25, 2015 at 8:58pm — 11 Comments

ऐ मौला

जीवन कठिनाईयों मे 

गुजर रहा है ऐ मौला 

रात गुजर रही है 

बगैर नींद के ऐ मौला 

बेपरवाह एक जुगनू 

खलल डाल रहा ऐ मौला 

सफर मे चला जा रहा हूँ 

मंजिल की तलाश मे ऐ मौला

कहता बहुत हूँ, चीखता बहुत हूँ 

सुनता कोई नहीं ऐ मौला 

काली रात कटेगी, सुबह तो होगी 

इंतजार मे हूँ ऐ मौला 

जख्म इतना दिया कि 

इंतहा कि हद कर दी 

जख्म के दर्द का अहसास न रहा ऐ मौला

खारा हो गया हूँ जैसे समंदर का पानी 

अब…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on February 24, 2015 at 8:07pm — 14 Comments

पागल कर दो

सुनो,

है ईश्वर ऐसा करो

मुझे पागल कर दो 

शरीर से दिमाग का 

संपर्क खत्म कर दो 

मेरे एहसास 

मेरी प्यास 

मेरी तृष्णा 

मेरा प्यार 

मेरी लालसा 

से मेरा नाता खत्म कर दो 

न मर्म रहे 

न भावना 

न दर्द रहे 

न रोग .... 

सुनो.... 

है ईश्वर ऐसा करो 

मुझे पागल कर दो 

जीवन तो तब भी रहेगा 

दौड़ेगा रगों मे खून 

देखुंगा, सुनुंगा 

खा भी लूँगा 

दोगे कपड़े तो…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on January 31, 2015 at 8:00pm — 7 Comments

मनन ...

डरी, सहमी सी लगती है

अंदर जो आवाज है

जिसे अन्तरात्मा कहते हैं

वो चुप है

इस निःशब्द वातावरण मे

वह चीख बनके

निकलेंगे कब ?

जिंदगी, आखिर ....

शुरू होगी कब ?

खुले मन से हँसी

आएगी कब ?

कब खिलखिलाकर

सच सच कहूँ तो

दाँत निपोर कर

आखिर हँसेंगे कब ?

बरसों से इस जाल मे बंधी

उसी राह पर चलते – चलते

आखिर हम बदलेंगे कब ?

थोड़ी आस,

थोड़ा विश्वास

धीरे धीरे पिघलता…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on August 3, 2014 at 6:30pm — 7 Comments

डायरी और उसके पन्ने ...

धूल में दबी हुयी ये डायरी

जिसकी एक एक परत की हैं ये यादें

हर एक सफा तुम्हारी याद है

.... न जाने कहाँ कहाँ रखा उसे

..... आलमारी मे ठूसा

..... बक्से में दबाया

.... ऊपर टाँड़ पर रखा

अटैची मे रखा ....

उसके पन्नों के रंग उतर गए

मगर लिखावट वही रही

आज भी देखकर उन सफ़ों को

और आपके उन हिसाबों को देखकर

उन हिसाबों मे हमारा भी अंश हैं

जिन्हे आज देखकर महसूस करता हूँ

उन सफ़ों पे लिखा आपका हिसाब

दूध वाले…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 8:30pm — 10 Comments

बैठक

याद आता है 

वो अपना दो कमरे का घर 

जो दिन मे 

पहला वाला कमरा 

बन जाता था 

बैठक .... 

बड़े करीने से लगा होता था 

तख़्ता, लकड़ी वाली कुर्सी 

और टूटे हुये स्टूल पर रखा 

होता था उषा का पंखा

आलमारी मे होता था 

बड़ा सा मरफ़ी का 

रेडियो ... 

वही हमारे लिए टी0वी0 था 

सी0डी0 था और था होम थियेटर 

कूदते फुदकते हुये 

कभी कुर्सी पर बैठना 

कभी तख्ते पर चढ़ना 

पापा की गोद मे मचलना…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on July 28, 2014 at 10:06pm — 11 Comments

गैर जरूरी चीजें

तमाम गैर जरूरी चीजें 

गुम हो जाती हैं घर से चुपचाप 

हमारी बेखबर नज़रों से 

जैसे मम्मी का मोटा चश्मा 

पापा जी का छोटा रेडियो 

उन दोनों के जाने के बाद 

गुम हो जाता है कहीं 

पुराने जूते, फाउंटेन पेन, पुराना कल्याण 

हमारी जिंदगी की अंधी गलियों से .... 

हर जगह पैर फैलाकर कब्जा करती जाती है 

हमारी जरूरतें, लालसाए 

आलमारी में पीछे खिसकती जाती है 

पुरानी डायरी, जीते हुये कप 

मम्मी का भानमती का…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on May 2, 2014 at 7:59pm — 11 Comments

अंतिम दर्शन

वो गंगा की धारा 

वो निर्मल किनारा 

जहाँ माँ थी लेटी

हमें कुछ न कहती 

हमें याद है वो 

निर्मल सा चेहरा 

अभी कुछ था कहना 

अभी कुछ था सुनना 

याद आ रहा था 

माँ का तराना 

जिसे गाया करती थी 

माता हमारी ... 

उठाया करती 

वो गाकर तराना 

मगर आज वो लेटी 

हमे कुछ न कहती 

पानी था निर्मल 

वो अश्रु की धारा 

रोके न रुकी थी 

वो आँखों की धारा 

वही था वो सूरज 

वही था…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on April 20, 2014 at 7:54pm — 6 Comments

बदलता मौसम

लो .... 

ये क्या मौसम बदलते ही 

तुमने रिश्तों का स्वेटर 

खोल दिया ... 

एक एक फंदे 

जो तुमने चढ़ाये थे 

इतने जतन से 

अचानक ही 

उन्हे उतार दिया .... 

इतने जल्दी तुम 

भी बदल गए 

इस मौसम की तरह 

चलो .... 

ऐसा करना 

मेरी यादों की सलाईयों को 

सहेज कर रख लेना 

फिर कभी ठंड आएगी 

और उस सलाईयों 

पर अहसासों के ऊन से 

फिर रिश्तों का स्वेटर 

बना लेना ... 

किसी…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on February 8, 2014 at 9:15pm — 10 Comments

मैं कौन हूँ .....

किसको पता कि कौन हूँ मैं ....

कोई शब्द नहीं निःशब्द हूँ मैं ....

खुद के चित्कार में छुप जाता हूँ

मेरा अस्तित्व,

मेरी संवेदनाएं

सन्नाटों ने खूब पढ़ा है

मेरे अनकहे शब्दों को

और ठंडी चुभती सर्द हवाओं ने

महसूस करा है ....

मेरे शब्दों के एहसास को .....

बहुत कुछ कहता हूँ

दिन भर .... 

तुमसे, सबसे

पर सच कहूँ तो 

आज तक

मैं, सिर्फ निःशब्द हूँ .....

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Amod Kumar Srivastava on January 9, 2014 at 10:49pm — 20 Comments

उलझन ... उलझन है ...

आज गहरे अंतस में

न जाने कैसी 

अजीब सी 

छाया बन रही है 

लगातार जारी है 

समझने की नाकाम कोशिश .... 

मगर छाया नहीं सुलझती 

दौड़ रहा हूँ ... 

बीते हुये कल के 

हर एक के जानिब को 

शायद वो हो ... 

नहीं वो नहीं है ... 

अच्छा वो हो सकता है 

मगर कहाँ भागूँ 

कितना भागूँ ... 

बहुत दूर आ  चुका हूँ 

वापस जाना मुमकीन नहीं हैं 

अंतस में 

छाया और गहरी 

होती जा रही…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on January 4, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

मेरे ख्वाब ....

जाओ तुम और दूर चले जाओ... 

जहां चाहो वहाँ चले जाओ 

मगर जी लो न मन भर 

एक बार मेरे साथ ....

मेरे ख्वाब...  मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....

धीरे से जाना ... 

आहट भी न करना 

नींद न टूटने पाये मेरी 

काँच से नाजुक हैं ये ... 

मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब .... 

कुछ तुम भी ले जाना 

बहुत हसीन हैं ये 

दुःख में हँसा देंगे ये 

मुझसे भी प्यारे हैं ये ...

मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब .... मेरे…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on December 21, 2013 at 8:25pm — 8 Comments

हम तो बहुत दूर आ गए ....

वो हँसना, वो रोना 

वो दौड़ना, वो भागना 

वो पतंगे, वो कंचे

जने कहाँ छूट गए... 

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

वो खेला, वो मेला 

वो संगी, वो साथी 

वो गुल्ली, वो डंडा 

वो चोर, वो सिपाही 

जाने कहाँ छूट गए ....

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

वो खुशी, वो हंसी 

वो खो-खो, वो कबड्डी 

वो आईस-पाईस, वो ऊंच-नीच 

जाने कहाँ छूट गए.... 

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

अम्मा की रोटी, उनकी…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on December 15, 2013 at 8:30pm — 4 Comments

जब रोज मरा करते थे ...

बातें खत्म हो गई जिसका 

जिक्र हम किया करते थे ...

वो गलियाँ कहीं 

खो गईं जिनपे हम 

चला करते थे ... 

न शाम रही न धुआँ 

किसी एक भी 

चराग में... 

वो चले गए जिन्हे

हम देखा करते थे... 

हमको क्या हक़ है

अब, किसी को कुछ कहने का ,,, 

रास्ता वो सब छूट गए 

जिनपे हम मिला करते थे ... 

अब हमको क्या मारेगी 

क्या, ये दुनियाँ की विरनिया 

वो अंदाज और था जीने का 

जब रोज मरा करते थे…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on December 8, 2013 at 10:55am — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
16 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
16 hours ago
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 30
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Nov 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Nov 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service