जीवन में सद्काम का,........... हुआ सदा सम्मान |
आये दिन अब कर्म के,........ जाने सजग किसान ||
कारी रैना भोर में,..................... बीती देकर ज्ञान |
चार प्रहर में दोपहर,............. देती अधिक थकान ||
सूली पर मनवा चढा,............ मानव हुआ निराश |
ताक रहा उठ बैठकर,............. वह नीला आकाश ||
राहत देते सांझ में,............. दिन के सब सद्कर्म |
मानव के उत्साह का,.............यह अद्भुत ही मर्म ||
होवे हर दिन एक सा, पाऊं जो मैं माप |
तेरा मेरा सब धरा,................. नाप सके तो नाप ||
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय श्री अशोक सर जी ,
सादर प्रणाम
इस मंच पर आपकी रचनाओं कों पढ़कर बहुत गौरव महसूस कर रहा हूँ |
यह मंच हमारे लिए ,सीखने व प्रयोग करने के लिए किसी यूनिवर्सिटी से कम नही हैं |सही अर्थो में छन्दों का प्रयोग धीरे धीरे समझ में आ रहा हैं |
राहत देते सांझ में,............. दिन के सब सद्कर्म |
मानव के उत्साह का,.............यह अद्भुत ही मर्म ||
प्रिय अशोक भाई ...छंद बद्ध अच्छी लय के सरल भावमय सुन्दर दोहे ...बधाई
आदरणीया शालिनी जी आदरेया सीमा जी दोहे पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया मेरा रचना कर्म सफल हुआ. सादर.
आदरणीय बृजेश जी सादर, आपके स्नेह से उत्साहवर्धन हुआ. यूँ ही स्नेह बनाए रखें. सादर आभार.
कारी रैना भोर में,..................... बीती देकर ज्ञान |
चार प्रहर में दोपहर,............. देती अधिक थकान ||
बहुत सुन्दर दोहे अशोक जी .........
आदरणीय अशोक जी .. आपके सभी दोहे अत्यंत गहन भावों से भरपूर हैं ... बहुत ही सुन्दर !
आदरणीय रक्ताले साहब आपके रचनाकर्म को देखकर लगता है सबकुछ कितना सहज और सरल है। आपकी भावाभिव्यक्ति में गजब की सहजता है। खुद लिखने बैठता हूं तो लगता है कि छंदबद्ध लिखना कितना कठिन है।
आपके लेखन को नमन! इस सुंदर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!
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