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ग़ज़ल: हिंदी को भूल इंग्लिश में वाव हो रहा है...

भीषण विनाशकारी बदलाव हो रहा है,
मासूमियत पे जमकर पथराव हो रहा है,

आदत बदल रही है फितरत बदल रही है,
रिश्तों में प्यार का भी अभाव हो रहा है,

अरमां तमाम टूटे बिखरे नज़र से सपने,
सूखा हुआ जखम था फिर घाव हो रहा है,

कुर्ता सफ़ेद लेकिन है दागदार देखो,
नेताओं का अनोखा स्वभाव हो रहा है,

ना व्याकरण न भाषा है शब्दकोष खाली,
हिंदी को भूल इंग्लिश में वाव हो रहा है...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Ashok Kumar Raktale on May 28, 2013 at 8:17am

भाई अरुण शर्मा जी सादर, व्यवस्थाओं पर आक्रोश व्यक्त करती सुन्दर गजल. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Vindu Babu on May 25, 2013 at 7:49pm
आदरणीय अरुन जी आज भारतीय संस्कृति की विकृति और अवहेलना को देखते हुए आपकी रचना हृदयातल को छू गई।
समसमायिक परिदृश्य को परिलक्षित करती हुई सुन्दर गज़ल बन पड़ी है।
सादर बधाई स्वीकारें।
Comment by Abhinav Arun on May 25, 2013 at 4:40pm

achchhi samyik ghazal hai shri arun ji !!

Comment by विजय मिश्र on May 24, 2013 at 12:54pm

आज क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते ,प्राकृत शब्द लोगों को मारूक लगते हैं , लोग वाग टोक देंगे -"आपकी बात समझ में नहीं आती ,हिंदी में बोलिए न | क्या अंग्रेजी में बोल रहे हैं  ? "  

परम्पराएँ एकदिन में नहीं बदलती ,इसके पोषक हममें से ही हैं ,यह छद्मवेशीओं के सधे हुए कूटनीतिक प्रयास का नतीजा है कि हम हिंगलिश के दौर में हैं ' wow.' और ' ooch '  पहले -दूसरे वर्ग के बच्चे बोलते हैं ,वे ना ही इसका full form  जानते हैं और बहुत के तो बाप-माँ भी नहीं ही जानते होंगे मगर बोलते हैं क्योंकि उन्हें पढ़ाई के पहले दिन से हिंदी वर्णाक्षर की जगह English Alphabets सिखाया जाता है तो उन्हें 'अहा ' और ' ओह ' कहाँ से आएगा ?यह संस्कृति घर में जन्म लेती है  आकाश से नहीं टपकती . बाकायदा हमें हमारी पहचान से बिलग किया जा रहा है ,  धनावलम्बिओं द्वारा बेहद सलीके से हमारी भाषा ,संस्कृति को धूलधूसरित किया जा रहा है और हम भी मौन रह इसे प्रश्रय दे रहे हैं . 

अरुणजी ! आपकी ऊँगली सही जगह पर इशारा कर रही है ,.शुभेच्छा . 

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 24, 2013 at 12:39pm

हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश भाई स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 24, 2013 at 7:54am

बहुत ही सुन्दर!

Comment by seema agrawal on May 23, 2013 at 7:37pm

ना व्याकरण न भाषा है शब्दकोष खाली,
हिंदी को भूल इंग्लिश में वाव हो रहा है..........सभी शेर एक से बढ़ कर एक 

हार्दिकशुभ कामनाएं आपको और आपके रचनाकर्म को 

Comment by बृजेश नीरज on May 23, 2013 at 4:43pm

वाह अरून भाई बहुत सुन्दर! अब तो आधी से अधिक हिन्दी अंग्रेजी में ही बोली जाती है। लोग उसे ही हिन्दी समझते हैं। वैसे भी अंग्रेजियत के बोझ तले दबी कुचली हिन्दी को कब राहत मिली।
इस भावाभिव्यक्ति पर आपको बधाई!

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