For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कास मैं होता कुत्ता

कास मैं होता कुत्ता अयरा गैरा नहीं एलसिसियन ,
अयरे गैरे रोड पर मरे परे मिलते हैं ,
खाने के लिए रोटी नहीं मिलती ओ भी सुखी .
दूध मलाई मांस का टुकरा तो खाता,
अगर होता मैं एलसिसियन कुत्ता ,
चलने के लिए सायकल नहीं मिलती ओ भी टुट्टी,
कर के पिछले सिट पर आराम से जाता ,
अगर होता मैं एलसिसियन कुत्ता ,
सोने के लिए टाट नहीं मिलती ओ भी फट्टी,
मखमली गद्दे पर आराम से सोता ,
अगर होता मैं एलसिसियन कुत्ता ,
ये प्रभु इ गलती को फिर मत दुहराना ,
अगले जनम मोहे कुत्ता बनाना ,
अयरे गैरे रोड पर मरे परे मिलते हैं ,

Views: 450

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 11, 2010 at 10:37am
waah guru jee bahut badhiya.....aapki ye khasiyat hai ki aap likhte hain halke me lekin wo bhaari ho jata hai naa jane kaise....lekin bahut badhiay likha hai aapne.....yograj bhaiya ne bahut hi sahi likha hai ki...'' सिंग तां पहलां ही नहीं सी - पूंछ वी कटवा लई,
आदमी ने आदमी बनके गंवाया बहुत कुछ ! "
bahut bahut dhanyabaad guru jee humlogo ke beech ye share karne ke liye....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2010 at 9:38am
Guru jee, bahut badhiya , aap halkey phulkey andaj mey bahut kuch kah jatey hai, badhiya likhey hai,
Yograj bhai ka diya gaya aek ref. line bhi kafi badhiya hai,
'' सिंग तां पहलां ही नहीं सी - पूंछ वी कटवा लई,
आदमी ने आदमी बनके गंवाया बहुत कुछ ! "
Thanks Guru jee

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 10, 2010 at 4:30pm
बहुत पीड़ा है गुरु जी आपकी पंक्तियों में, आप सही कह रहे हैं बंगले में पलने वाला कुत्ता भी ग़रीब के बच्चे से बेहतर है ! 80 के दशक में हमारे एक मित्र हुआ करते थे श्री मदन मदहोश, पंजाबी भाषा में बहुत आ'ला दर्जे कि शायरी किया करते थे ! आपकी कविता पढ़ कर बरबस उनका एक शेयर ज़ेहन में उभर आया :

'' सिंग तां पहलां ही नहीं सी - पूंछ वी कटवा लई,
आदमी ने आदमी बनके गंवाया बहुत कुछ ! "

अर्थात, इंसान के सींग तो पहले से ही नहीं थे वक़्त के साथ साथ उसकी पूंछ भी ग़ायब हो गयी ! इस लिए आदमी ने आदमी बन कर पाया कुछ भी नहीं बल्कि बहुत कुछ खोया ही है! आपकी कविता भी इंसान कम होती कद्र कि तरफ ही इशारा करती है ! इतनी गंभीर व्यंगय के लिए मेरी बधाई स्वीकार कीजिए !
Comment by Admin on May 10, 2010 at 4:08pm
ये प्रभु इ गलती को फिर मत दुहराना ,
अगले जनम मोहे कुत्ता बनाना

"आमीन" हा हा हा हा हा हा , बहुत बढ़िया व्यंगात्मक कविता है ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service