बीर छंद या आल्हा छंद
(यह छंद १६-१५ मात्रा के हिसाब से नियत होता है. यानि १६ मात्रा के बाद यति होती है. वीर छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।) होती है. )
एक प्रयास किया है मैंने गुरुजनों का अमूल्य सुझाव मिलेगा ऐसी अपेक्षा है !!
कूद पड़ी जब रण में माता ,दानव दल में हाहाकार !
एक हाथ में भाल लिए थी ,दूजे हाथ पकड़े तलवार !!
हाथ काटती पैर काटती ,कछु दुष्ट का लै सिर उपार !!
दौड़ा -दौड़ाकर तब माता ,करती जाय भीषण संहार !
आँखों में इक क्रोधानल था ,गले धरे मुंड की माल !
सभी निशाचर लगे कापने,सम्मुख दिखे हो खड़ा काल!!
कुछ बिलखाते कुछ चिल्लाते,मरे पड़े कुछ चरों ओर!
प्रयास सभी विफल हो जाते ,दुष्टों का कुछ चले न जोर !!
देखि रौद्र रूप माता का ,कालहु फिर तब डरि डरि जाय !
असहाय से खड़े सब पापी,सूझे ना फिर कोय उपाय!!
अंग-भंग करती दुष्टों का ,मर्दन करती जाती मान !
पथ ना कोई सूझ रहा था ,टूट गया सारा अभिमान!!
अडिग खड़ी थी माता रण में,मानों जैसे खड़ा पहाड़ !
सारी सृष्टि कम्पित हो गयी ,ऐसी करती जाय दहाड़ !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
१६-१५ की यति का विधान लिखते हुए भी दूजे हाथ पकड़े तलवार कहना जबकि वह सरलता से दूजे हाथ धरे तलवार हो सकता था !
इसतरह की हड़बड़ी का कारण समझ में नहीं आया, भाई विंध्येश्वरीजी. आपकी रचनाओं से बहुत कुछ की अपेक्षा रहती है.
आप जैसे कुछ प्रतिभावान प्रयासकर्ताओं का वाह-वाही का अतिशयतापूर्वक आग्रही होना बहुत सालता है. लेकिन मैं कर ही क्या सकता हूं सिवा इंगित करने के ?
शुभेच्छाएँ.
hardik aabhar adarneey ashok sir ////apke sujhav par dhyan dunga.....
darneeyaa vedika didi galti se ho aa gaya hai jisase matra bhi jyda ho gai hai......aapane apana amulya sujhav diya iske liye hardik aabhar
भाई राम शिरोमणि जी सादर, सुन्दर प्रयास हुआ है वीर छंद पर, हार्दिक बधाई स्वीकारें. आदरणीय राजेश जी ने सही कहा है प्रवाह पर काम करने की आवश्यकता है, मुझे लगता है मात्रा गणना की चुक ही प्रवाह में बाधा है. कुछ शीघ्रता में पोस्ट डाल दी गयी लगती है. एक बार मात्राओं की गणना अवश्य देखें एक टंकन त्रुटी भी है. आपकी छंद रचना के अंतिम पंक्तियों पर एक प्रयास मैंने भी किया है.देखें.
अडिग खडी थी माता रण में, सम्मुख जैसे होय पहाड़ |
सारी धरती थर-थर काँपे, करती माता वार दहाड़ ||
आदरणीय राम शिरोमणि जी सादर ....
अडिग खड़ी थी माता रण में,मानों जैसे हो खड़ा पहाड़ .....को लय बद्ध गाने में हो अतिरिक्त जान पड़ रहा था ....
उर्जा से भरपूर आल्हा लिखने के लिए बधाई
सादर गीतिका 'वेदिका'
hardik aabhar adrneey shukla g........
प्रिय राम शिरोमणि जी सर्व प्रथम तो आप को ढेर सारी बधाई माह के सक्रिय सदस्य चुने जाने पर
adarneey kewal bhai hardik aabhar,,,,,,,,,,,,,,,,
hardik aabhar bhai rajesh ji..............abhi to seekh raha hu aap logon ka sahyog aur margdarshn milega to kuchh ban payega
आ0 पाठक जी, ’अडिग खड़ी थी माता रण में, मानों जैसे हो खड़ा पहाड़ !
सारी सृष्टि कम्पित हो गयी, ऐसी करती जाय दहाड़ !!’अतिसुन्दर मित्र! बड़ा जोश भर दिया, लगता है..कछु दुष्ट का लै सिर उपार !! के स्थान पर..कछु दुष्ट का लै सिर उतार!! लिखना चाह रहे थे। बधाई स्वीकारें। सादर,
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