कबहुँ सुखी क्या आलसी, ज्ञानी कब निद्रालु ?
वैरागी लोभी नहीं, हिंसक नहीं दयालु!! १
शक्ति क्षीण करते सदा, यदि अवगुण हों पास
दुर्गुण रहित चरित्र में, होता शक्ति निवास!!२
गुरुता का व्यवहार ही, गुरु को करे महान
पूजनीय औ श्रेष्ठ जो, पायें खुद सम्मान!!३
नैतिकता सद्चरित का, जिसमें पूर्ण अभाव
दयाहीन उस मनुज के, रहें मलिन ही भाव!!४
अवगुण निज में देखिये, रख सद्गुण पहचान
त्रुटियों से जो सीख ले, जग में वही महान!!५
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
Comment
उत्तम दोहे हुए हैं, भाई रामशिरोमणिजी. सतत प्रयासरत रहें.
शक्ति क्षीण करते सदा, यदि अवगुण हों पास .. . अवगुण के पास होने का कथ्य समझ में नहीं आया. कि, अवगुण या गुण का कोई भौतिक स्वरूप नहीं होता कि पास होंगे. बल्कि ये अंतर्निहित हुआ करते हैं.
शुभेच्छाएँ.
hardik dhanyawad adarneey jawahar lal ji
दोहे के भाव सुन्दर और सीख देने वाले हैं!
बृजेश कुमार सिंह ji hardik aabhar.............
आदरणीया सीमा जी हार्दिक आभार ...सादर
आदरणीय अशोक सर हार्दिक आभार .......आपका अमूल्य सुझाव मिला बड़ी प्रसन्नता हुई ..ऐसे ही कृपा बनाए रखियेगा ...सादर
ऐसे रास्ता दिखाने वाले दोहे अब कम ही पढ़ने को मिलते हैं। बहुत सुन्दर लिखा आपने। मेरी बधाई स्वीकारें।
कबहुँ सुखी क्या आलसी, ज्ञानी कब निद्रालु ?
वैरागी लोभी नहीं, हिंसक नहीं दयालु!! १ ...................दोहे के प्रथम पद में गेयता का नितांत अभाव है. मुझे लगता है बेहतर होगा इस पर पुनः विचार करें. क्रम चार और पांच के दोहे अच्छे रचे हैं बधाई स्वीकारें भाई राम शिरोमणि जी.
बहुत भाव पूर्ण दोहे ....सभी दोहों का कथ्य उच्च कोटि का ....दोहों के मूल स्वभाव से न्याय करते हुए सभी दोहों में इस दोहे ने मन को प्रसन्न कर दिया
नैतिकता सद्चरित का, जिसमें पूर्ण अभाव
दयाहीन उस मनुज के, रहें मलिन ही भाव!!...हार्दिक बधाई राम शिरोमणि जी .......
आदरणीय लक्षमण सर हार्दिक आभार !!!!!!!!!
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