सीस झुके है सबके ,करते हुए वन्दना
लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है!
जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़,
मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!
पल भर अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,
पूजन में लीन सब, कष्ट भूल जाते है !
जान पड़ता हैं आज,डूबे सबहि भक्ति में,
छोड़कर काम धाम, देखो चले आते है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सुन्दर प्रयास के लिए बधाई श्री राम शिरोमणि जी
hame to seekhne ko hi mil raha hai .aabhar
हार्दिक आभार आदरणीय अशोक सर !बस ऐसे ही स्नेह बनाए रखे...सादर
हार्दिक आभार आदरणीया प्राची मैम!बस ऐसे ही स्नेह बनाए रखे...सादर
भाई राम शिरोमणि जी सादर, सुन्दर प्रयास हुआ है घनाक्षरी पर, यह वार्णिक छंद है, मैं कई बार लिख कर भी इसके प्रवाह को ठीक से नहीं पकड़ पा रहा हूँ. आप अन्य छन्दों में जिस तेजी से आगे बढ़ रहे हैं मुझे यकीन है आप कवित्त को भी अच्छे से रच सकेंगे. ओ बी ओ पर भोजपुरी रचनाओं का एक उत्सव आयोजित हुआ था उसमे आदरणीय बागी जी द्वारा गाये कवित्त का ऑडियो सुनकर आप इसके प्रवाह को साध सकते हैं. http://www.openbooksonline.com/group/bhojpuri_sahitya/forum/topics/...
प्रिय राम शिरोमणि जी
नए नए छंदों पर आपका प्रयास बहुत सुखद लगता है...
घनाक्षरी पर आपका जगज्जननी को समर्पित यह प्रथम प्रयास मुझे बहुत अच्छा लगा.
यह ज़रूर है कि गेयता निर्बाध नहीं है... पर निरंतर प्रयास से आप इसे जल्दी ही साध लेंगे..
सद्प्रयास के लिए शुभकामनाएँ
भाई मैं इस विधा के बारे में तो कुछ नहीं जानता, सो मेरे लिए तो यह विधा काला अक्षर भैंस बराबर।
हां, इस नवरात्रि पर माता का यह स्मरण दिल को भा गया।
जय मां दुर्गे!
आदरणीय संदीप भाई जी ,!आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार !!बेहतर लिखने का प्रयाश करूँगा
आदरणीय राम भाई बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है
सादर बधाई स्वीकारें
तत प्रवाह के क्रम में आदरणीय विनय भाई से सहमत हूँ
उसे सुधारने का कुछ प्रयास किया है
सीस सबके झुके हैं ,करते हुए वन्दना
लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है
जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़,
मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!
पल में ही अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,
पूजन में लीन सभी , कष्ट भूल जाते है !
जान पड़ता हैं आज, हुए सभी भक्तिमय ,
छोड़कर काम धाम, देखो चले आते है !!
आदरणीय भाई केवल जी आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार !!
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