For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढलकते आँसुओ को सहेजना चाहते है

ढलकते आँसू  (गीत)
लक्ष्मण लडीवाला
आँसू चाहे गम के हो, ख़ुशी के हो कपोलों को भिगोते है 
देखने वाले चाहेजो समझे, ख़ुशी या गम मगर रिझाते है ।
 
आँसू जब ढलकते है, ग़मों को कम करते राहत दिलाते है, 
ढलकते आँसू बेहद ख़ुशी से पड़ते दिल के दौरे से बचाते है।
 
गर बाहर दुनिया में आता बच्चा न रोये, लोग घबराते है,
थपेड थपेड कर किसी तरह बच्चे को आखिर रुलाते है  ।
 
संसार से आखिर में विदा होते भलेही वह हंसता जाता है,
उसकी अर्थी को कन्धा देते सब लोग आँसू बहाते जाते है।
 
मनुज तो क्या अथाह प्रेम में प्रभु भी आँसू  रोक नहीं पाते,
मित्र सुदामा की दीनता पर स्नेह के आँसू हमें यही बताते है। 
 
प्यार में आंसुओ की कीमत सच्चे प्रेम करने वाले ही जानते है,
मोती से ढलकते आँसुओ को वे सहेज कर रखना चाहते है । 
 
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

 

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 9:05pm

    बहुत बढ़िया, आँसू बहुत कीमती होते हैं ,जब तलक आँखों में है तो लाख का जमीं पर गिर पड़े तो ख़ाक का ,अच्छी रचना बधाई आपको  

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:19pm

आपका सतत प्रयास रहना आननदित करता है सर जी ................बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:48pm

..बहुत खूब सर..बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 6:32pm

हार्दिक आभार आरती शर्मा जी 

Comment by Aarti Sharma on February 2, 2013 at 5:53pm

ढलकते आँसू बेहद ख़ुशी से पड़ते दिल के दौरे से बचाते है।....बहुत खूब सर..बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 3:35pm

रचना पसंद कर सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका भाई श्री विजय निकोरे जी 

Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 2:46pm

आदरणीए लक्ष्मण प्रसाद जी,

संसार से आखिर में विदा होते भलेही वह हंसता जाता है,
उसकी अर्थी को कन्धा देते सब लोग आँसू बहाते जाते है।

आपकी यह कविता बहुत ही भाई। आपको शत-शत बधाई!

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"बदलते लोग  - लघुकथा -  घासी राम गाँव से दस साल की उम्र में  शहर अपने चाचा के पास…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service