For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - खूब भटका है दर-ब-दर कोई

एक और ग़ज़ल पेश -ए- महफ़िल है,
इसे ताज़ा ग़ज़ल तो नहीं कह सकता, हाँ यह कि बहुत पुरानी भी नहीं है
गौर फरमाएँ

खूब भटका है दर-ब-दर कोई |

ले के लौटा है तब हुनर कोई |

अब पशेमां नहीं बशर कोई |
ख़ाक होगी नई सहर कोई |

हिचकियाँ बन्द ही नहीं होतीं,
सोचता होगा किस कदर कोई |

गमज़दा देखकर परिंदों को,
खुश कहाँ रह सका शज़र कोई |

धुंध ने ऐसी साजिशें रच दीं,
फिर न खिल पाई दोपहर कोई |

कोई खुशियों में खुश नहीं होता,

गम से रहता है बेखबर कोई |

पाँव को मंजिलों की कैद न दे,
बख्श दे मुझको फिर सफर कोई |

गम कि कुछ इन्तेहा नहीं होती,
फेर लेता है जब नज़र कोई |

सामने है तवील तन्हा सफर
मुन्तजिर है न मुन्तज़र कोई 

बेहयाई की हद भी है 'वीनस',
तुझपे होता नहीं असर कोई |

१३- ०५ - २०१२

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2012 at 1:14am

यही कारण है संदीप भाई से इतना कुछ कहता हूँ..  

Comment by वीनस केसरी on December 19, 2012 at 1:04am

खुले दिल से मिली दाद और हौसला अफजाई के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ


@ संदीप पटेल भाई, अब खुद को नौसिखिया कहना बंद कर दीजिए ... आपकी ग़ज़ल पढ़ने के बाद अब आप पर यह शब्द 'सूट' नहीं करता है

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 17, 2012 at 6:43pm

वाह-वा! वाह-वा! क्या बात है भाई वीनस जी! ये बेहतरीन ग़ज़ल बड़ी देर से साझा कि! ख़फ़ीफ़ में मैंने बहुत से शानदार ग़ज़लें सुनी हैं और आज यह भी उनमें सम्मिलित हो गई! उम्दा कहन! हुस्ने मतला बहुत अच्छा लगा! मगर पर्सनल च्वाइस कहूँ तो...

पाँव को मंज़िलों की क़ैद न दे,

बख़्श दे मुझको फिर सफ़र कोई; --> लाजवाब तेवर.. दिल छू गए आप.. बधाईयां स्वीकार हों..

Comment by नादिर ख़ान on December 17, 2012 at 4:11pm

पाँव को मंजिलों की कैद न दे, 
बख्श दे मुझको फिर सफर कोई | 

गम कि कुछ इन्तेहा नहीं होती, 
फेर लेता है जब नज़र कोई |

Behtareen agaz, umda ashaar, apne andaz men khubsurat maqta.

bahut khub adarniy vinus ji.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 17, 2012 at 3:58pm

बेहतरीन ग़ज़ल कही है साहब
हम नौसीखियों के लिए इक और पाठ
कहाँ गिराना है कौन सा हर्फ़ सीख सको तो सीख लो
बहुत बहुत बधाई सर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 17, 2012 at 3:21pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल है वीनस जी। कुछ शे’र तो बेहद खूबसूरत हैं। जैसे

खूब भटका है दर-ब-दर कोई |
ले के लौटा है तब हुनर कोई |

हिचकियाँ बन्द ही नहीं होतीं,
सोचता होगा किस कदर कोई |

गमज़दा देखकर परिंदों को,
खुश कहाँ रह सका शज़र कोई |

धुंध ने ऐसी साजिशें रच दीं,
फिर न खिल पाई दोपहर कोई |

कोई खुशियों में खुश नहीं होता,

गम से रहता है बेखबर कोई |

पाँव को मंजिलों की कैद न दे,
बख्श दे मुझको फिर सफर कोई |

गम कि कुछ इन्तेहा नहीं होती,
फेर लेता है जब नज़र कोई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2012 at 2:02pm

क्लीयर हुआ. .. :-)))

Comment by Abhinav Arun on December 17, 2012 at 1:25pm

हिचकियाँ बन्द ही नहीं होतीं, 
सोचता होगा किस कदर कोई | 

गमज़दा देखकर परिंदों को, 
खुश कहाँ रह सका शज़र कोई |

धुंध ने ऐसी साजिशें रच दीं, 
फिर न खिल पाई दोपहर कोई |

कोई खुशियों में खुश नहीं होता,
 
गम से रहता है बेखबर कोई |

शानदार गज़ल श्री विनस जी , ये शेर खास तौर पर पसन्द आये हार्दिक  बधाई इस सशक्त गज़ल पर !!

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2012 at 12:45pm

saurabh ji
Is ghazal ko 2122 / 1212 / 22 par taktiA karke dekhe.n

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 17, 2012 at 12:12pm

आदरणीय वीनस भाई लाजवाब ग़ज़ल कही है सबके सब अशआर भरपूर आनंद दे रहे हैं, पढ़कर तरोताजा हो गया हूँ भर-2 कर दिली दाद और बधाई स्वीकारे.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
18 hours ago
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service