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कोई दिल को जलाता है ..............

कोई दिल को जलाता है कोई दिल को लुभाता है

कोई मासूम बनकर तो यूँ ही दिल में समाता है

ये दुनिया है यहाँ सब लोग चलते दिख ही जाते हैं

कोई दिल को लगाकर ठेस मन में मुस्कुराता है ||

कहीं पे प्यार की खुशबू कहीं अपनों की हलचल है

किसी दिल में है ख्वाहिश तो कहीं सपनों की कलकल है

यहाँ बस खोलकर आँखें हैं सपने तो बिखर जाते

फिर टूटीं वहीँ कड़ियाँ कहीं कितनो की हर पल है ||

कहीं पे संगदिल हैं लोग पर कहीं खामोश सा मंजर

बचेगा शेष क्या कर में सदा लगता रहा है डर

वो देता है यहाँ सबको जो दो दिन की इनायत है

कई जीते यहाँ फिर भी यूँ ही अनजान तो रहकर ||

तुम्हे सब याद करते हैं तुम्हे सब प्यार करते हैं 

पैसे की जो ताक़त है तुम्हारी बात करते हैं

मुझे मत कहना कि दौलत है प्यारी लग रही मुझको

पैसा गर नहीं है पास तो मुहब्बत चंद करते हैं ||

नज़ारे पास हैं आते तुम्हारी ये नसीबी है

दगा जो लोग हैं देते तुम्हारे जो करीबी हैं

सभी मुंह खोलते कैसे हैं अपनी बात को लेकर

कहीं मासूम हैं बनते कहीं उनकी रकीबी है ||


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          अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि'

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on November 16, 2012 at 1:11am

वाह अतेन्द्र जी बहुत दिन के बाद आपको सक्रिय देख कर बेहद खुशी हुई

रचना के लिए बधाई स्वीकारें

Comment by रविकर on November 14, 2012 at 5:24pm

nice

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on November 14, 2012 at 4:47pm
मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2012 at 4:41pm

कोशिश के लिये बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभेच्छाएँ, अतेन्द्र ’रवि’जी.  एक अरसे बाद आपका ओबीओ पर आना सुखकारी है. आपका अंदाज़ पसंद आया जो कई लिहाज़ से मंचीय है. लेकिन कई बंद की बह्र राह भटक रही है. 

आप पूरे बंद को   १२२२  १२२२  १२२२  १२२२  के वज़्न में बाँधे और देखिये कि इस प्रविष्टि को तदनरूप तक्तीह किया जाय तो क्या मिसरे सही आ रहे हैं. 

पुनः बधाई..

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