For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४१ (बाकी रह गया इक शख्स जो राज़ नवादवी है)

दिन ऐसे गुज़र जाते है जैसे हाथ से ताश के पत्ते. देखते देखते महोसालोदहाई सर्फ़ हो गए, कहाँ गए सब? ज़िंदगी में जो बीत गया, किधर चला चला गया? जो लोग अब नहीं हैं तकारुब में और जिनके मख्फी साये ही ज़हन में आते जाते हैं, वो कहाँ हैं अभी? ख्वाहिशों से भी मुलायम सपने जो कभी पूरे नहीं हुए, उदासियों सी भी तन्हा कोई राहगुज़र जो कभी मंजिल तक न पहुँच पाई, दिल की सोजिशों से भी रंजीदा इक नज़र जो झुक गई मायूसियों के बोझ तले- क्या हुआ उनका?

 

तुम्हारे गाँव का वो खाली खाली घर जहाँ बसी है आईने के सामने संवरते तुम्हारे गुनगुनाने की सदा, तुम्हारे आँचल की गिरह में बंधा गेंदे का फूल जिसे मैंने छुपा दिया था खेल खेल में तुम्हारे जूड़े से चुराकर, तुम्हारी आँखों का तवील खिंचा काजल जिसका इक रेज़ा आ लगा था मेरे शाने से लहराकर-  तसव्वुरों में ज़िंदा इन लम्हों का सच न जाने किधर खो गया?

 

तुम नहीं हो मगर तुम्हारे ख्याल की कशिश आज भी उसी शिद्दत से बरकरार है. ये कशिश एक शिकस्ता दिल की ठंढी आह ही तो है, जो माज़ी की सरसब्ज़ यादों के तजाजुब के ज़ेरेअसर कहीं जाती भी नहीं, वरना गर्म हो के आसमान का रुख न ले लेती? हा हा हा हा ! दिल कहाँ बसता है कहीं? भोपाल में तो बस... हम रहते हैं. दिल तो सुदूर पूरब के कोहसार में खो गया कहीं और बाकी रह गया इक शख्स जो राज़ नवादवी है.

 

© राज़ नवादवी, भोपाल

मंगलवार ३०/१०/२०१२ अपराह्न ०३.०५

महोसालोदहाई- महीने साल और दशक; तकारुब- समीपता; मख्फी- छुपा हुआ, अदृश्य; सोजिश- जलन, प्रदाह; रंजीदा- संतप्त, ग़मगीन; सदा- आवाज़; तवील- लंबा, दीर्घ; रेज़ा- कण, कतरन, बहुत छोटा टुकड़ा; तसव्वुर- ख्याल; कशिश- आकर्षण, खिंचाव; शिद्दत- तीव्रता; शिकस्ता- टूटा; माज़ी- अतीत; सरसब्ज़- हरे-भरे; तजाजुब- गुरुत्वाकर्षण; ज़ेरेअसर- प्रभाव में; कोहसार- घाटी, उपत्यका; 

Views: 478

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on November 16, 2012 at 9:37am

शुक्रिया भाई सौरभ  जी! विलम्ब से प्रत्युत्तर हेतु क्षमा! सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2012 at 10:37am

भाईजी, बच्चन के शब्द-पुष्प साझा कर रहा हूँ --

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का
विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला !!

शुभेच्छाएँ

Comment by राज़ नवादवी on November 1, 2012 at 9:27pm
धन्यवाद भाई लक्षमण जी. तहेदिल से शुक्रिया कि आपने मेरे लिखे को पसंद किया! मेरे लिए डायरी लेखन स्मरण की पराकाष्ठा है, अतीत को फिर से जी कर वर्तमान में पुनः लौट आना. चुनांचे, लिख के भूल जाता हूँ, बातें ज़हन से निकल जाती हैं और फिर सब कुछ पहले जैसा ही हो जाता है. इतना ही.

सादर!
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 31, 2012 at 3:14pm

आपकी डायरी के पन्नो में बहुत से यादे खोंस रक्खी है, जो अब एक एक कर सामने आ रही है |हम भी लुफ्त उठा रहे है | जो गंदे का फूल छुपा दिया था, और जो काजल का रेजा आपके शाने से आ लगा था,उनकी यादे आपको सताती होगी | मगर अपने इस पन्ने पर रोज फूल पंखुड़ी तो रखते हो न आप ? गद्य रचना भी बेहद पसंद आई, बधाई राज नवा दवी भाई  

Comment by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 12:52pm

आपका बहुत बहुत शक्रिया आदरणीया राजेश जी. आपकी दाद पाके दिल खुशी से फूले नहीं समा रहा है.

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 31, 2012 at 12:38pm

काव्य के आलावा गद्य रचना में भी किसी की याद में इतने खूबसूरत शब्द घड देना कोई आप से सीखे बहुत खूबसूरत एहसास लाजबाब संस्मरण 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
22 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service