For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुरंग (बैरवे) पर एक प्रयास.

देख पिया को सम्मुख,मन हर्षाय,

देखे मुख को गौरी,नयन घुमाय/

 

पागल प्रेम दिवानी,पिया रिझाय,

सुधबुध खोकर अपनी,झूमति जाय/

 

हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,

बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय/

 

मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,

व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/

 

प्रेम पगे दिल आयी,मिलन कि चाह,

प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह/

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 12, 2012 at 7:19pm

आदरणीय अम्बरीश जी

              सादर प्रणाम, आपके थोड़े परिवर्तन से ही बैरवे कि रंगत निखर आयी है. मै आगे जब बरवै  लिखूंगा तो  इस प्रकार का निखार लाने कि पूरी कोशिश करूँगा. आपके असीम सहयोग के लिए हार्दिक आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 12, 2012 at 7:15pm

आदरणीय प्रभाकर जी

                     सादर प्रणाम, सही कहा आपने शब्दों के मूलस्वरूप पर ध्यान देना आवश्यक है मेरा इस बात पर ध्यान कुछ कम था. आपके महत्वपूर्ण सुझाव के लिए आभार.

Comment by AVINASH S BAGDE on October 12, 2012 at 6:57pm

मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,

व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/

wah..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 12, 2012 at 5:34pm

आपके प्रयास को सलाम श्री अशोक रक्ताले जी 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 4:57pm

//हाथ धरे कभी शीश,चूमे जाय,
बनी मतवाली रीझ,घूमे जाय//

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपने सार्थक सुझाव देकर सम चरणों की समस्या का पूर्ण निदान कर दिया है जिसके लिए साधुवाद .... फिर भी इसके विषम चरणों में मामूली सी त्रुटि अभी भी शेष है ....जिसे मेरे विचार में निम्न प्रकार से सुधारना बेहतर रहेगा ....  

//शीश धरे कर मस्तक, चूमे जाय,

मतवाली बन रीझे,  घूमे  जाय//

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 4:47pm

//देख पिया को सम्मुख, मन हर्षाय,

देखे मुख को गौरी, नयन घुमाय//

अति सुन्दर बरवै ...

 

//पागल प्रेम दिवानी, पिया रिझाय,

सुधबुध खोकर अपनी, झूमति जाय//

यह भी कुछ कम नहीं ….

 

//हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,

बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय//

//शीश धरे कर मस्तक, चूमे जाय,

मतवाली बन रीझे,  घूमे  जाय//

 

//मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,

व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय//

मुस्काये अरु दिल पर, घाव लगाय,

व्याकुल मनवा थिरके, चैन न पाय// 

 

//प्रेम पगे दिल आयी, मिलन कि चाह,

प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह//

//प्रेम पगे दिल  मिल लें , ऐसी  चाह,

प्रेम बिना नहि सूझे,  दूजी राह//

बरवै रचने के इस सद्प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 10:49am

बरवै छंद में सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आदरणीय रक्ताले जी. लेकिन कहीं कहीं मात्राएँ बराबर करने की गरज से शब्दों से मूल स्वरूप से खिलवाड़ दुरुस्त नही लग रहा. उदाहरण के तौर पर:


//हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,
 बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय// इसे अगर यूं कर लिया जाये तो कैसे रहेगा?

हाथ धरे कभी शीश,चूमे जाय,
बनी मतवाली रीझ,घूमे जाय

बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service