For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"कील चुभी वो नहीं विलग "

"कील चुभी वो नहीं विलग "

वे कहते हैं सब भूल गये

हम कहते कुछ भी याद नहीं

कारण मैंने भी किया वही

जो उसने पिछले साल किये

अब उसके भी एक आगे है

मेरे भी पीछे बाँध दिए !!

रस्में पूर्ण समाज ख़ुशी

हम भी फिरते हैं ख़ुशी ख़ुशी

हुए मुखरित अंकुर दूर सहज

पर कील चुभी वो नहीं विलग !!

अब कील चुभी दो हाथ मिले

संतुष्ट सभी कुछ आस हिये

लुट जाओ उनका हार बने

रोको मोती ना डूब मरे !!

वे भूले क्या ? जब ध्यान करें

क्या याद नहीं ? हम याद करें

आधार एक छवि एक मिली

दो प्राणों की है एक जमीं !!

मरोड़ दो छोड़ दो वहीँ नव-पल्लव को

ये आहें सांसें लेने को शीश उभर आया है ,

पी जाओ विष हैं ठीक कहे ,

है समता ,हम भी भूल गए !!

 

 (पहला प्यार भूलता कहाँ है )

 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

कुल्लू यच पी 
१.०० पूर्वाह्न ७.८.२०१२ 

 

 

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2012 at 10:40pm

रस्में पूर्ण समाज ख़ुशी

हम भी फिरते हैं ख़ुशी ख़ुशी

हुए मुखरित अंकुर दूर सहज

पर कील चुभी वो नहीं विलग !!

बहुत बढ़िया भ्रमर जी बधाई.

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 7, 2012 at 10:13pm

कील चुभी वो नहीं विलग "

एकदम सही फरमाया है सर जी

हर पल है छन की योदों को तरो ताज़ा करती ये कविता

दो प्राणों की है एक जमीं !! बहुत ही खूब कहा

बहुत बहुत बधाई सुरेन्द्र जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2012 at 7:55pm

कील चुभी वो नहीं विलग -सुन्दर रचना जो व्यक्त करती मेरे इन भावों को-

आधा एक छवि एक पहचान,दो प्राण मिलकर हुए एक जान
विवाहित एक दूजे को प्यार करने वालों की यही पहचान -
क्या सखी हीर राँझा -नहीं सखी प्रेमी दंपत्ति
हार्दिक बधाई भाई सुरेन्द्र भरमार जी  
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 2:36pm

आदरणीय अम्बरीश जी सच में पहला प्यार अपना घर तो मन में बना ही लेता है जब बिछड़े भी कभी मिल जाए तो एक सुन्दर छुवन वो चितवन कुछ कह ही जाती है बरबस .....आभार प्रोत्साहन हेतु 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 2:34pm

आदरणीय कुशवाहा पहले प्यार ने आप के दिल को भी छुआ कुछ सत्य लगा रचना में लिखना सार्थक रहा आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 2:33pm

प्रिय अजीतेंदु जी जय श्री राधे ..रचना पहले प्यार की दास्ताँ आप को पसन्द आई सुन हर्ष हुआ आभार
भ्रमर ५

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 12:09pm

दो प्राणों की है एक जमीं....

'पहला प्यार भूलता कहाँ है' .........सुंदर पंक्तियाँ .....बधाई ....

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 7, 2012 at 11:16am

पहला प्यार भूलता कहाँ है

सत्य ही कहा है. आदरणीय भ्रमर जी, सादर अभिवादन के साथ.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 7, 2012 at 10:59am

दो प्राणों की है एक जमीं !!

मरोड़ दो छोड़ दो वहीँ नव-पल्लव को

sundar panktiyan.......badhai......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service