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राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३७

मरना क्या है?

 

जब मेरे दादा मरे थे तो मैं बहुत छोटा था, मुझे मालूम न हो सका कि मरना क्या है 

कुछ अजीब सा माहौल था मगर फिर सब अच्छा लगा 

घर में भोज हुआ और खाने पीने को अच्छा मिला.

 

जब मेरे चाचा मरे तो मैं कुछ बड़ा हो चुका था, माहौल ग़मगीन था, लोग रो रहे थे, सन्नाटा था 

मगर फिर सब अच्छा लगा 

घर में भोज हुआ और खाने पीने को अच्छा मिला.

 

जब मेरे पिता मरे तो पहली बार दुःख हुआ, लगा मरना कितना दुखदाई है जो जीवित रह गए हैं उनके लिए

मगर फिर किसी का कहा याद आया-दुःख का कारण मरना नहीं, अपनों का मरना है,

वरना हर दिन कितने लोग मर जाते हैं और हम 

बेखबर जी रहे होतें हैं अपनी दुनिया में.

 

और कुछ सालों बाद जब मैं मरा तो

सहसा मुझे पता भी नहीं चला कि मैं मर चुका हूँ 

सब कुछ वही था, घर, लोग, रास्ते, मगर मैं कितना हल्का हो गया था हवा की तरह 

और आर-पार समां रहा था दरो-दीवार में एक लेज़र किरण की तरह.

मुझे कुछ शक हुआ और फिर अचानक मैंने अपने शरीर को बिस्तर पर पड़ा पाया 

जिसके इर्द-गिर्द इकट्ठे थे कुछ लोग

यह परदेस था जहाँ मैं रहा था कुछ साल और आज अचानक जहाँ मैं मर गया था

मुझे तब पता लगा मैं मर चुका हूँ और फिर मुझे याद आई बहुत दिनों पहले देखी इक अंग्रेजी फिल्म 'द घोस्ट'.

.

मैं सकते में था अकेला था, मुझे मेरी बेटियाँ याद आयीं और याद आये

मेरी पत्नी और मेरे पालतू कुत्ते बौब्बी, निन्नी, और ओबामा

मैं क्षण भर में मीलों दूर अपने घर पहुँच चुका जहाँ थी  

मेरी बेटी साशा, मेरी छोटी बेटी नाना, और मेरी पत्नी जो कुत्तों को खाना खिला रही थी

'अरे मैं यहाँ हूँ, मुझे देखो, साशा-नाना, मेरी बात तो सुनो बेटा, बिन्नी, तुम कुत्तों को प्यार से खिलाओ ना'

मैं सब को सब कुछ देख रहा था कह रहा था, मगर मुझे कोई नहीं 

अजीब था ये होने और न होने का भाव

और उससे भी अजीब अभिव्यक्ति और संचार का इकतरफा बर्ताव.

 

मैं दुःख और एकाकीपन की पराकाष्ठा पे था और बिलख-बिलख के रो रहा था 

पर अब बहने को आंसू नहीं थे और सुनने को सिसकियाँ नहीं

सब कुछ अन्दर ही अन्दर टूट रहा था

मैं मर चुका था और आज पहली बार पता लगा था 

मरना क्या है!!!!!

 

© राज़ नवादवी

टेक्नोपैक कोलकाता गेस्ट हाउस, १०/०८/२०११  

 

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Comment by राज़ नवादवी on September 21, 2012 at 12:50am

प्रमेन्द्र जी, मौत का तोहफा लिए ज़िंदगी घूमती है, छुपाके रखती है और सबसे आखिर में हमें नवाज़ती है. अच्छा खेल है! और हम सबों ने कई कई बार खेला है! 

Comment by राज़ नवादवी on September 21, 2012 at 12:48am

सीमाजी, आपका भी शुक्रिया कि आपने पढ़ा और पसंद फरमाया.

Comment by seema agrawal on September 20, 2012 at 11:52pm

वाह क्या अभिव्यक्ति है मरने के इस अहसास को यदि लोग जीते जी समझ सकें तो शायद आँसू की हर बूँद कीमती हो जाये ,नज़रंदाज़ होने की पीड़ा मरने से कम नहीं होती ...दिल को छू  लिया आपके शब्दों ने और कथ्य ने ......शुक्रिया 

Comment by प्रमेन्द्र डाबरे on September 20, 2012 at 11:39pm

आप नहीं मर सकते..

Comment by राज़ नवादवी on July 17, 2012 at 3:24pm

शुक्रिया आदरणीया रेखाजी. ज़रूर पढ़ा होगा आपने. मरने का विषय ज़िंदगी से बहुत करीब से जुड़ा जो है. साभार! 

Comment by राज़ नवादवी on July 17, 2012 at 3:22pm

शुक्रिया आदरणीया प्राची जी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 13, 2012 at 2:41pm
मरने के बाद भी दिल अटका है... पत्नी बेटी और कुत्तों में...
सुन्दर अभिव्यक्ति आ. राज नवादवी जी
Comment by Rekha Joshi on July 13, 2012 at 12:35pm

राज़ जी ,मै आपसे पूर्णतया सहमत हूँ मौत के बाद भी जिंदगी है ,वैसे मैने भी इस बारे में पढ़ा है ,बहुत गंभीर विषय है ,आभार  

Comment by राज़ नवादवी on July 13, 2012 at 12:36am

आदरणीया रेखाजी, धन्यवाद. मरने के बाद के जीवन का बहुत मुताला किया है. संतों और फकीरों को भी पढ़ा. सच मानिए, मरने के बाद जीवन बरकारार ही रहता है अगरचे नौईयत बदल जाती है. हर जानदार ने मौत का स्वाद न जाने कितनी बार चखा है.  

Comment by Rekha Joshi on July 10, 2012 at 1:23pm

आदरणीय राज़ जी ,मौत एक शाश्वत सत्य ,आपकी कहानी की तरह मैने डिस्कवरी चैनल पर बहुत पहले  एक प्रोग्राम अल्ट्रा साइंस देखा था उसमे रूस की एक सच्ची घटना के बारे में बताया था ,मरने के बाद एक साइंटिस्ट अपने घर पहुंचता और अपने बीबी बच्चों के पास आताहै और उनके दुःख दर्द को समझता है ,लेकिन दो दिन बाद मुर्दा घर में उसे होश आ गया और उसने सब को आप बीती सुनाई,वैसे मालूम नही मरने के बाद क्या होता है ,यह तो मरने के बाद ही पता चले गा ,अच्छी प्रस्तुति,बधाई 

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