For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धर्म या राजनीती © (सोचने की अभी बहुत ज़रूरत है हमें )


धर्म या राजनीति © ( सोचने की अभी बहुत ज़रूरत है हमें )

विवाद और मानव ► विवाद और मानव, दोनों का चोली दामन का साथ है ... प्राचीन काल, जब मनुष्य सभ्य नहीं था तभी से संघर्षों, ईर्ष्या, जलन आदि का चलन चला आ रहा है ...मगर उसका जो स्वरुप आज है उससे खुश होने की नहीं वरन शर्मिंदा होने की आवश्यकता है ... बच्चे ने छींक मारी, चुड़ैल पड़ोसन जिम्मेदार है ... घर, दफ्तर, बाज़ार सभी इसकी चपेट में हैं ... मंदिर के बाहर अधखाये माँस के टुकड़े पाए गए यह धार्मिक दंगा फ़ैलाने की साजिश है ... इन दिनों नया एक फैसला आने वाला है ... जो अगर एक समुदाय के पक्ष में आया तो वो लोग लड़ेंगे और यदि विपक्ष में आया तो ये लड़ेंगे , मगर इनका लड़ना तय है ...

मानवीय पहलू ► कुछ टुच्चे किस्म के स्वार्थी नेतागण अपनी-अपनी रोटियों को सेंकने को कोशिश में जाने कितने ही घरों के चूल्हे बुझा जाते हैं यह किसी को दिखाई नहीं देता ... रोज-रोटी की जुगाड में लगे लोग इन दंगों की भेंट चढ जाते हैं ... रोते बच्चे के लिए कुछ खाने की जुगाड करने को घर से निकला मजलूम बाप शाम को जब घर नहीं लौट पाता तब कोई नेता या संगठन का अधिकारी इन्हें पूछने नहीं आता ... कई बार तो परिवार को यह तक पता नहीं चल पाता कि जो लौट नहीं पाया उसके न आने के पीछे छुपी असल वज़ह क्या है ... दूसरी ओर लोग सोच रहे होते हैं कि यह जो क्षत-विक्षत शरीर पड़ा हुआ है वह आखिर है किसका ... ?

पंचनामे में पुलिस की तरफ से एक लावारिस लाश पाई दिखा दी जाती है ... कुछ का पता चल जाता है तो मीडीया एवं अखबारनवीसों की ऐसी छीना-झपटी जैसे मुर्दे के घर वालों से ही अब उनकी रोटी चलने वाली हो ... थोड़े से रुपये देने की घोषणा जोकि कम ही लोगों को नसीब होती है , कारण कि बेचारी बीवी अपने पति के मरने का सबूत नहीं दिखा पायी ... अब वह बेचारी सड़क पर छितराए माँस के लोथड़ों में से कैसे ढूंढें अपने पति को ... और वह लाश जिसका सर सड़क के दांये फुटपाथ के किनारे , एक आँख सुए द्वरा फोड कर विक्षत बनायीं हुई या फिर बम के धमाके से फटी-टूटी एक दूसरी लाश जिसके छितराकर फ़ैल चुके चेहरे की पहचान अब शायद उसके अपने घरवाले भी ना कर सकें ... शहर की सड़कों पर ऐसे ही नज़ारे आम होने लगते हैं जिन्हें देखना तो दूर सुनना भी ह्रदय-विदारक होता है ...

किलकारी मार-मार कर रोता बच्चा जिसके करीब उसकी माँ कज़ा (मौत) के हवाले हो चुकी है का करुण क्रंदन सुनने की उस समय जैसे किसी को फुर्सत ही नहीं होती ... उस समय कर्मकांडी अपना काम जो किये जा रहे होते हैं ... जैसे सभी को यमराज के पास हिसाब देना हो कि उसके दरबार में किसने कितने भेजे या किसके आदेश से कितने भेजे गए ...

मरता कौन है ► यह सवाल भी एक सोचने का एक नया मुद्दा हो सकता है ... ठीक से अगर सोचा जाये तो जो जलाये जाते हैं वे कच्चे झोंपड़े या सामान्य लोगों के घर होते हैं , उनमे से घसीटकर हिंदू या मुस्लिम बताकर काट डाले जाने वाले भी मजलूम ही होते हैं ... क्या कभी किसी ने सुना है कि कोई राजनेता या किसी संगठन का पदाधिकारी मारा गया हो ... या इस दौरान ऐसे किसी बंदे को देखा किसी ने जिसकी रोज़ी रोटी छिन कर उसके बच्चों के भूखों मरने की नौबत आई हो ...

आर्थिक पहलू ► दंगों के दुष्प्रभाव स्वरुप सरकारी गैर-सरकारी संपत्ति की तोड़-फोड से कितना नुकसान होता है उसका आकलन कर तो लिया जाता है मगर उसका सत्यापन कौन करे ? असली आंकड़े किये गए आकलन से कहीं आगे की चीज़ होते हैं ... जो तथ्य सरकार पेश करती है वे आधे-अधूरे होते हैं ... इस दौरान जाने कितने घरों का आर्थिक गणित गड़बड़ा जाता है इसका हिसाब कौन रखता है ? इन्हें हर्जाना कौन देगा ? बड़े स्तर के हर दंगे या बंद से देश को हजारों करोड रुपयों की चपत लगती है , सरकार तो इसे झेल जाती है परन्तु व्यक्तिगत स्तर पर चल रहे व्यापारों को मिली क्षति पर कौन जिम्मेदार कहलायेगा ?

आखिरी सवाल ► चाहे मंदिर रहे या मस्जिद रहे उसका फायदा क्या है ? क्या भगवान तुम्हारे अल्लाह/भगवान ने यह कह दिया है कि जब तक मेरे नाम पर हजारों-लाखों मनुष्यों की बलि नहीं चढाई जायेगी तब तक मुझे चैन नहीं आएगा ? या बलि चढ़वाने का काम अब ऊपर वाले ने अपने हाथों में ले लिया है ? और अगर ऐसा है तब भी कौन है वह जिसे खुदा/भगवान ने स्वयं आकार ऐसा करने को कह दिया है ? सिर्फ मंदिर में शीश नवाने से या मस्जिद की अजान गाने से ही क्या हम इंसान होने का दर्ज़ा पा जाते हैं ? अगर ऐसा है तो क्यूँ नहीं सभी धर्मावलंबी मंदिरों या मस्जिदों के बाहर लाईन लगाकर खड़े नज़र आते ? या इंसानियत अब ईद का चाँद हो गयी है जो साल में सिर्फ कुछ-एक बार ही आती है ? अपने झूठे नाम के लिए औरों की छाती पर पाँव रखना कब छोड़ेंगे हम ? और घर को भरने के लिए मासूमों के खून की होली खेलना कब बंद करेंगे समाज के ये कथित ठेकेदार ? हिंदू हो या मुस्लिम या फिर कोई और भी हो, हैं तो सब आखिर मानव के बच्चे ही ना ... तो फिर बचपन से साथ खेलने वाले क्यूँ बड़े होकर एक-दूसरे को ही काट डालना चाहते हैं ?

शर्म करो अब ... बस करो, बहुत हुआ यह नंगा नाच ...
कब तक मासूम जानता के खून से अपनी होली मनोरंज़क बनाते रहोगे ?

सोचो ... !! सोचने की अभी बहुत ज़रूरत है हमें ... !!


जोगेन्द्र सिंह Jogedra singh ( 24 सितम्बर 2010 )

.

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 26, 2010 at 6:57pm
चाहे मंदिर रहे या मस्जिद रहे उसका फायदा क्या है ? क्या भगवान तुम्हारे अल्लाह/भगवान ने यह कह दिया है कि जब तक मेरे नाम पर हजारों-लाखों मनुष्यों की बलि नहीं चढाई जायेगी तब तक मुझे चैन नहीं आएगा ? या बलि चढ़वाने का काम अब ऊपर वाले ने अपने हाथों में ले लिया है ? और अगर ऐसा है तब भी कौन है वह जिसे खुदा/भगवान ने स्वयं आकार ऐसा करने को कह दिया है ? सिर्फ मंदिर में शीश नवाने से या मस्जिद की अजान गाने से ही क्या हम इंसान होने का दर्ज़ा पा जाते हैं ?

जोगी भाई आपकी एक एक बात अकाट्य है, आप की बातों से मैं सहमत हूँ, हिंदू मुश्लीम कोई भी हो आम लोगो मे कही कोई दुर्भावना नही है, यह सब राजनीति करने वाले सियाशी लोगो का नाटक है, जो एक दूसरो को लड़ाकर अपनी गोटी लाल करते है,
Comment by Hilal Badayuni on September 26, 2010 at 2:35pm
बिलकुल ठीक लिखा है आपने जोगेंद्र जी
ये कुछ धर्म के ठेकेदार है जो समाज से इन विषयों पर अपनी दाल रोटी चलाना चाहते है मगर अब इन लोगो की दाल रोटी मंदिर मस्जिद क नाम पे नहीं चलने वाली समाज काफी कुछ समझता है
Comment by आशीष यादव on September 26, 2010 at 11:18am
बहुत सोचने की अभी बहुत ज़रूरत है हमें|
एक एक कटु सत्य है इस राजनीति में जो लोगो को नहीं दिखाया जाता|
अभी कुछ दिन पहले की बात है, मै एक पार्टी के कार्यालय पर गया था, वह एक विशाल पंडाल लगा था| जब पार्टी के वह के प्रमुख से पैसे की बात हो रही थी मई भी था| करीब २ लाख रूपया हुवा था एक दिन का | उसी दौरान एक महिला आ गयी जिसे रुपयों की सख्त जरुरत थी| पार्टी के वहा के प्रमुख ने दुत्कारते हुवे भगा दिया| हद तो तब हो गयी जब जब वहा टिकट के चक्कर में मौजूद नेता लोग उससे उसका हाल पूछ कर १०० रूपया भी नहीं दिया| अंत में मुझसे रहा नहीं गया| मै अपने पॉकिट खर्च से निकलकर उस महिला को सौ रूपया दिया|
ये स्थिति है नेतावो की| दंगा फसाद की सबसे बड़ी जड़ ये लोग है मै मानता हु| बेचारी गरीब जनता जिसे दो जून भोजन नहीं नसीब होता लड़ने भला किस आधार पे जायेगी|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
6 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
8 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
9 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service