For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाई

बुल्लु की शादी का कर्ज़ अभी सिर पर है..... और वह मर गई।इतना कह चेंथरु लगा फफक पड़ेगा, पर उसने अंदर के तूफान को थाम लिया।शायद पड़ोस के भाई से झिझक हो कि शिकायत हो जाएगी।पर, उसकी आँखें भींग गई थीं। अँधेरे में भी उसकी आवाज सब कुछ जाहिर कर रही थी।

दुख हुआ सब सुनकर, चेंथरु।ढाढस बांधते हुए मास्टर जी बोले।

भइया, कोई पूछेवाला नहीं था कि कुछ मदद चाहिए क्या?’ चेंथरु ने अपने चचेरे भाई का हाथ पकड़ लिया। देर से आँखों में ठहरी गंगा बहने लगी।

यही समय है,चेंथू।सब अपने में मस्त हैं।

ना भइया,अपने में ना। दूसर के केतना हड़प लीं,इ फेर में लोग है।तोहरा इ दुआर पर भोज-भात भइल, एही से सामान सब चोरी ना गइल। हमरा घरे होइत, तब पूड़ी-बुनिया सब भीतर हो जाइत। आधा पेट खा के लोग उठ जाते।चेंथरु का दर्द मुखर होने लगा था। वह आगे बोलते गया,

बाबू मरे के टाइम बड़कू भाई से कहे थे कि चेन्थुया के बेटी के बिआह में सामिलात(इकट्ठे) के पइसे में से दस हजार रुपल्ले दे देना। उ मर गए।बुल्लु की शादी तय हुई। ई चुप रहे, जइसे काठ मार गया हो।

और वो दस हजार रुपये?मिले तुम्हें?’ मास्टर जी ने कुतूहल वश पूछ लिया।

अरे,सुनिए ना। हम इधर-उधर से जोगाड़ किए। बीस हजार उ ट्रक वाले सुबो से मिल गए। अभी देना है। हम लोग छेंका-तिलक में गए। सब हुआ। तब बड़कू भाई जी बोले कि दु हजार लाया हूँ,बाबू बोले थे।

फिर?दिये?’ मास्टर जी ने जानना चाहा।

एँ! देने खातिर थोड़े बोले थे।मुँहपुड़ाई थी कि पूछे भी,देने भी न पड़े। काम तो हो चला था।मैंने लेने से मना कर दिया।

ऐसा?’ मास्टर जी चकित हुए।

अउर का? बड़कू बने हैं, बड़कू! एक माई के पेट के जाये हैं। बस कहने को।चेंथरु का का दर्द छलक पड़ा। वह फफक कर रोने लगा।

मास्टर जी उसे सांत्वना देते हुए इतना ही कह पाये, ‘भाई के पैदा होने के दिन की खुशी कायम रहे,वही स्वर्ग है।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 379

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on October 21, 2022 at 11:35am

पैसे ख़ून के रिश्तों पर भी हावी हैं। इस बात को रेखांकित करती अच्छी लघुकथा है आदरणीय मनन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by Manan Kumar singh on October 20, 2022 at 9:14am

आदरणीय लक्ष्मण भाई जी, आपका आभार। नमन। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 9:54pm

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service