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आज का दिन है बड़ा सुहाना, हवा में खुशियां फैली है

आओ मिलकर ख़ुशी मनाए, घाटी ने बाहें खोली है

सत्तर साल से जिन पैरों को, जंजीरों ने जकड़ा था

घाटी के दामन को अब तक, जिन धाराओं ने पकड़ा था

ख़त्म हुआ अनुच्छेद आज वो, अब तुम खुलकर साँसे लो

कदम बढ़ाओ तुम भी आगे, इस राष्ट्र पुरुष (अखण्ड भारत) के संग हो लो

शायद थोड़ी देर हुई है, ये पहले ही हो जाना था

भारत माँ को ये धरोहर, पहले ही मिल जाना था

घाटी केवल स्थान नहीं है, भारत माँ का सम्मान है

मुकुट शीष का सदा रहा है, देश का ये अभिमान है

बहुत सहा है अब तक तुमने, जाने कितने दुःख पाए है

तेरी सीमा के रक्षा में अबतक, कितनों ने प्राण गवाएं है

आतंकवाद के दाग को तुमने, बड़े दिनों तक झेला है

धूल जाएंगे दाग ये सारे, बस चार दिनों का खेला है

अभी तलक जो दबी हुई थी, वो सब इच्छा पूरी होगी

दिल्ली से अब कश्मीर की, बेशर्त ये दूरी तय होगी

फांस जो दिल में लगी हुई थी, दिल को जो दुखलाती थी

कश्मीर के बिछडो को अबतक, जो हर पल बड़ा रुलाती थी

ख़त्म वो सारी बंदिश है अब, डर की कोई बात नहीं

ये तो एक नई सुबह है, लम्बी काली रात नहीं

शत्रु की कोई बुरी नज़र, अब तुझ पर ना पड़ने देंगे

आँख उठाई अगर किसी ने, धर से शीष अलग कर देंगे

अब कोई बर्बाद ना होगा, ना अपना घर कोई खोएगा

नए नस्ल के बिज़ यहाँ पर, अब हर काश्मिरी बोएगा

जो खुद घर को लौटना पाए, वो बच्चों को बतलाएंगे

सफर शुरू बस आज हुआ है, हम लौट के घर को जाएंगे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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Comment

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Comment by AMAN SINHA on March 28, 2022 at 10:08am

@Saurabh Pandey 

मान्यवर, 

आपसे प्रोत्साहन पाना मेरे लिये गौरव की बात है। 

मैं सतत प्रयत्न करुंगा की आपके सुझावो पर चलकर अपनी लेखनी में लगातार सुधार करता रहूं। 

धन्यवाद। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2022 at 2:22pm

वाह !

आपका सतत प्रयासरत रहनालआपकी सफलता के सोपान प्रशस्त करेगा, आदरणीय. 

आपका सार्थक प्रयास आपकी रचना-प्रक्रिया के प्रति आश्वस्ति है.

आप पटल पर भारतीय छंद विधान समूह के अथवा गजल के समूह के आलेख भी पढ़ते रहे. गेयता, विन्यास आदि के प्रति बोध बढ़ता जाएगा.

शुभातिशुभ

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