जहाँ दिखे अँधियार वहीं पर दीप जलाना
छाये खुशी अपार वहीं पर दीप जलाना
अपने मन के भीतर का जो पापी तम है
'अयं निजः' का भाव जहाँ पलता हरदम है
'वसुधा ही परिवार' जहाँ अंधेरे में है
सबसे पहले यार वहीं पर दीप जलाना
जहाँ दिखे अँधियार………………..
मुरझाए से होठों पर मुस्कान बिछाने
छोटी-छोटी खुशियों को सम्मान दिलाने
जिन दर दीप नहीं पहुँचे हैं उन तक जाकर
रोशन करना द्वार वहीं पर दीप जलाना
जहाँ दिखे अँधियार………………..
मन में उत्सव धारे वह मुस्तैद खड़ा जो
देश सुरक्षा खातिर घर से दूर पड़ा जो
अपने देवों खातिर रखते दीप जहाँ पर
उनके खातिर यार वहीं पर दीप जलना
जहाँ दिखे अँधियार………………..
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्री लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' सर प्रणाम। रचना पर आपकी टिप्पणी पाकर बहुत उत्साहित हूं।
आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब प्रणाम। इस रचना पर आपसे सराहना पाकर मैं बहुत उत्साहित हूं। उत्साहवर्धन के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
जनाब आशीष यादव जी आदाब, क्या शानदार रचना हुई है, वाह... हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
आदरणीय श्री Samar kabeer साहब प्रणाम। आपकी टिप्पणी हमारे लिए अनमोल है।
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जनाब आशीष यादव जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
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