For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतिम इच्छा (लघुकथा)


एक शव को गिद्ध कौओं द्वारा नोचते खसोटते देख करीब पड़े एक बूढ़े बीमार कुत्ते से न रहा गया और उसने उनसे कहा ,"अरे!अरे! इतनी बेदर्दी से इसको क्यों नोच-खसोट रहे हो। थोड़ा आराम से खाओ न । अब यह कौन-सा उठने वाला है?"
गिद्ध ने अपना आहार खाते हुए कहा,"आओ! तुम भी चखो,इसका माँस बहुत ही स्वादिष्ट है...।"
कौओं के समूह से एक कौए ने कहा," अहा! मैंने भी ऐसा स्वदिष्ट माँस पहले कभी नहीं खाया...।"
बूढ़े कुत्ते ने अपने अगल-बगल देखा, उसको अपनी बिरादरी का कोई भी सदस्य कहीं नज़र नहीं आया। उसका शरीर इतना शिथिल हो चुका था कि वह उसको सरकाने के लिये भी ताकत नहीं जुटा पा रहा था। उसने कहा,"मैं भी कई दिनों से भूखा हूँ, और भूख ने मेरा यह हाल कर दिया है कि ...।"
गिद्ध और कौओं की टोली में से किसीको भी उसपर दया न आयी, पर उस टोली में से एक नन्हा गिद्ध फुदक-फुदक कर उसके पास आया और बोला, "दादाजी! आप यही देख रहे हैं न कि आपकी बिरादरी का कोई भी नहीं आया ...वो वो .. नहीं आयेंगे।"
" तुम्हे कैसे पता बच्चे?" कुत्ते ने आश्चर्य से कराहते हुए पूछा।
" मैं जब यहाँ आ रहा था, तब मैंने आपकी बिरादरी के कुछ सदस्यों को बात करते सुना था।"
"तफसील से बताओ बेटा"
"यह अपने परिवार से बहुत प्यार करता था, समर्पण भाव से इसने हर कर्तव्य निभाया पर इसके घर वालों ने हरदम इसको दुत्कारा, हीन-भावना से देखा।"
"ओह, दुःखद...!"
"इसने यही चाहा था कि इसका कोई अंतिम संस्कार न किया जाए, क्योंकि घरवालों ने उसको जीते जी ही मार दिया था।"
"अरे, ऐसी कैसी सोच?"
इस बीच एक कौआ भी उनके निकट आया जो इन दोनों के वार्तालाप को लगातार सुन रहा था। और उसने कहा, "और सुना है, इसके कुछ मित्रगण ने शक का काढ़ा पीने के उपरांत इसपर अपमान के बाणों की लगातार वर्षा करते रहे।"
"यह सब तो ठीक है, पर इससे हमारी बिरादरी..."
" अपने अंतिम दिनों में ये अकेला रहता था जहाँ आपकी बिरादरी के लोग ही इसके मित्र थे। आपकी बिरादरी प्यार और समर्पण की भावनाओं की कद्र करती है।" उस बच्चे गिद्ध ने कहा।
"हाँ!यह तो सच है।" थके-बुझे होने के बावजूद गर्वीले अंदाज़ में उस बूढ़े कुत्ते ने कहा, "पर मेरे समझ में अब भी कुछ नहीं आ रहा।"
"अरे दादाजी, यह इंसान घरवालों से मुक्ति चाहता था, जिन्होंने इसको कभी अपना न समझा तो फिर उनसे क्रिया करवा कर यह एहसान मरते वक़्त वह न लेना चाहता था।"
"और मित्रगण?"
"यह लगता था कि वे सब मित्रगण इसके शव को इस हाल में देखकर अपनी नफ़रत को..."
"धत्त! ऐसा भी कहीं होता है?"
"पर, एक बात है, इस व्यक्ति को आपकी बिरादरी से बहुत प्यार और सम्मान मिला, सो वे लोग..."
"अच्छा!तो यह बात है!बेटे, इन्सान तुम्हारी और मेरी बिरादरी को नोचने खसोटने वाला कहते हैं पर सच में.." बूढ़े कुत्ते ने कष्ट से हाँफते हुए कहा और फिर आँखें बन्द कर लीं हमेशा के लिये ।
आसमान में दो सन्तुष्ट आत्माओं का मिलन हो रहा था।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2021 at 8:20pm

नमस्ते आदरणीय समर भाई

अनिल जी एवं आपकी टिप्पणियों से सहमत हूँ मैं भी। जी मानती हूँ इस लघुकथा में समय देना होगा। ओबीओ से हमेंशा से मार्गदर्शन मिलता रहा है। इस रचना को पोस्ट करते समय पुराने दीनी की याद आ गयी थी। जी इसमें कार्य अवश्य करूँगी। 

Comment by Samar kabeer on September 14, 2021 at 7:52pm

बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अनिल मकारिया जी से सहमत हूँ ।

Comment by Anil Makariya on September 13, 2021 at 6:38pm
बढ़िया! मानवेत्तर लघुकथा।
यह स्पष्ट है कि इस लघुकथा को टाइम देने की जरूरत है।
इस लघुकथा को मौजूदा लंबाई से थोड़ा छोटा किया जाना बेहतर होगा, कुछ अनावश्यक संवाद छोटे किये जा सकते हैं अथवा हटाये जा सकते हैं।
मेरे विचार से,
'फिर हमेशा के लिए आंखे बंद कर ली।' इस वाक्य पर ही अंत हो तो बेहतर।
'पर सच में' को
इसे तरह लिखिये 'लेकिन असल में...'

दीदी वैसे आप स्वंय तीन-चार बार पढ़कर बेहतर ठीक कर लोगे।
कथ्य एवं कथानक बढ़िया है ।
शीर्षक अच्छा है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन अभिवादन व हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली..हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"सुन्दर होली गीत के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। बहुत अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, उत्तम दोहावली रच दी है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service