For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'जब मैं सोलह का था': ग़ज़ल

22/22/22/22/22/22


जब मैं सोलह का था, और तुम तेरह की थी
मैं भी  भोला  सा था, तुम  भी  मीरा  सी थी।

दिल तब बच्चा सा था, आलम अच्छा सा था..
बातें सच्ची सी थीं, आँख वो वीणा सी थी।

शामें खुशबू सी थीं, रातें जादू सी थीं..
दुनिया दिलकश सी थी, मोहब्बत पहली थी।


बारिश प्यारी सी थी, पतझड़ क्यारी सा था..
गर्मी शीतल सी थी, सर्दी आँचल सी थी ।


दुपहर साया सा था, तुमको पाया सा था..
दिल के द्वारे पे धक-धक दस्तक तेरी थी।


किरणें रेशम सी थीं, जुल्फें बरहम सी थीं
दो लब कुमकुम से थे, बोली सरगम सी थी।


महका महका मन था, बहका बहका तन था..
बचपन यौवन से मिल, काया कंचन सी थी।


सहरा दरया सा था,पानी मदिरा सा था
चाहत मजनूँ सी थी,उल्फत लैला सी थी।


"जान" आखिर कब कैसे ,पल वो सारे छूटे..
हर शय मुझसे रूठी, जबसे तुम रूठी थी।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 8, 2021 at 9:41am

जनाब 'जान' गोरखपुरी साहिब आदाब, किसी भी बात से सहमत होना या असहमत होना आपकी मान्यताओं और निर्णय पर आधारित होता है, किसी को भी बाध्य नहीं किया जा सकता है, और मैंने भी अपनी मान्यता और सीमित ज्ञान मात्र के आधार पर अपनी राय दी है, सहमत होना या असहमत होना आपका निर्णय और अधिकार होता है। बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल की अच्छी मिसाल पेश की है आपने। सादर। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 7, 2021 at 11:07pm

आ. समर सर सादर अभिवादन  आपकी बात से सहमत हूँ कोई ग़ज़ल कितना समय मांगती है मुझे ये तो नहीं पता इतना जानता हूँ कि कोई 2 दिन में ही हो जाती है कोई 2 साल में भी नहीं होती यह बेहद साधारण सी  रचना पिछले चार महीने में किसी तरह यहाँ तक पहुँचा पाया हूँ और असंतुष्ट भी हूँ। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 7, 2021 at 11:00pm

आ. अमीरुद्दीन सर आपकी दोनों ही बातों से मेरा मन सहमत नहीं हो सका, खासकर दूसरी से तो बिल्कुल भी नहीं कृपया पुनः गौर करें।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 7, 2021 at 10:58pm

Comment by Samar kabeer on March 6, 2021 at 8:59pm

जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है,अभ्यासरत रहें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 6, 2021 at 7:17pm

जनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी साहिब आदाब, ख़ूबसूरत इन्सानी जज़्बात से लबरेज़ ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने, इस के लिए आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ, मगर आप की इस ग़ज़ल के क़वाफ़ी और रदीफ़ सहीह नहीं हैं, इस ग़ज़ल पर आपको और मेहनत करना होगी। 

1. मतले में आप ने 'की' और 'सी' क़वाफ़ी लिए हैं और शायद 'ई' (2 मात्रिक) को क़ाफ़िया सेट किया है जो कि दुरुस्त नहीं है। जहाँ तक मेरी जानकारी है अगर मतले में आप ने रदीफ़ से पहले 'की' के साथ 'किसी' जैसा लफ़्ज़ (या अन्य कोई शब्द जो एकाधिक अक्षर युक्त 'ई' तुकान्त हो) लिया होता तो आपका 'ई' क़ाफ़िया दुरुस्त होता, इसके बाद आगे के सभी अशआर में आपके लिए गए क़वाफ़ी (जो एक अक्षर के हैं) भी दुरुस्त होंगे। 

2. मतले में 'तुम' के साथ 'थी' नहीं रदीफ़ को 'थीं' करना होगा। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 149 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
16 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 149 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
39 minutes ago
SACHIN updated their profile
1 hour ago
Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
" आदरणीय सुशील सरन जी,आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया प्राप्त कर प्रसन्नता हुई।  हार्दिक धन्यवाद…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कुछ हो मत हो नेता दिख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"वाह आदरणीय जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"वाह आदरणीय जी सच और झूठ की बहुत सुंदर व्याख्या की है आपने ।हार्दिक बधाई सर"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Chetan Prakash's blog post एक ताज़ा गज़ल
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत सृजन हुआ है, शेर दर शेर मुबारक कबूल करें सर"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"अन्तस भावों की सहज अभिव्यक्ति आदरणीया जी । हार्दिक बधाई"
10 hours ago
Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय डा0 विजय शंकर जी,रचना अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका,सादर। "
18 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय उषा अवस्थी जी , रचना अछी है। हाँ , यह भी कहा जाता है कि कभी कभी कुछ लिखना हम लोगों की विवशता…"
20 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आभार , सादर।"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

मधुमालती छंद. . . .

मधुमालती छंद ....1डर कर कभी, रोना नहीं ।विश्वास को, खोना  नहीं ।तूफान   में, सोना  नहीं ।नफरत कभी ,…See More
yesterday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service