For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Krish mishra 'jaan' gorakhpuri's Blog (45)

ग़ज़ल: खिड़की पे माहताब बैठा है।

2122 1212 22

आँख में भरके आब बैठा है।

खिड़की पे माहताब बैठा है।

**

रातभर वाट्सऐप पे है लड़ा

नोजपिन पे इताब बैठा है।

**

सुर्ख़ आँखें अफ़ीम हों गोया

पलकों को ऐसे दाब बैठा है।

**

यूँ ग़ुलाबी सी शॉल है ओढ़े

जैसे कोई गुलाब बैठा है।

**

धूप में खिल रही हैं पंखुरियाँ

खुश्बू में लिपटा ख़्वाब बैठा है।

**

सुब्ह से पढ़ रहा हूँ मैं उसको'

और वो लेके किताब बैठा…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 15, 2021 at 10:32pm — 16 Comments

ग़ज़ल~ तुझसे मिलकर

22 22 22 22 22 22 22

तुझसे मिलकर हम जो रो लेते तो अच्छा होता..

जख्मी दिल को नमक से धो लेते तो अच्छा होता।



हम अपने सर को रखकर कुछ पल तेरे दामन में..

कतरा कतरा आँसू बो लेते तो अच्छा होता।

सहरा सहरा दरिया दरिया पर्वत पर्वत वन वन..

पल भर खुद को खुद से खो लेते तो अच्छा होता।



हर पल है जब आंखों में तेरे सपनों का जगना.

कोई दिन हम तुझमें सो लेते तो अच्छा होता।

जब अपनों के हो न सके,तेरा होना हो न सका …

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2021 at 8:00am — 4 Comments

'जब मैं सोलह का था': ग़ज़ल

22/22/22/22/22/22



जब मैं सोलह का था, और तुम तेरह की थी

मैं भी  भोला  सा था, तुम  भी  मीरा  सी थी।

दिल तब बच्चा सा था, आलम अच्छा सा था..

बातें सच्ची सी थीं, आँख वो वीणा सी थी।

शामें खुशबू सी थीं, रातें जादू सी थीं..

दुनिया दिलकश सी थी, मोहब्बत पहली थी।



बारिश प्यारी सी थी, पतझड़ क्यारी सा था..

गर्मी शीतल सी थी, सर्दी आँचल सी थी ।



दुपहर साया सा था, तुमको पाया सा था..

दिल के द्वारे पे धक-धक दस्तक तेरी…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2021 at 11:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल: 'इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत'

22 22 22 22

इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत

रश्क मुसीबत रंज कयामत।

**

किसको क्या होना है हासिल

कोई न जाने अपनी किस्मत।

**

क्यूँ मैं छोडूं यार तेरा दर

हक है मेरा करना इबादत।

**

देख ली हमने सारी दुनिया

तुझसी न भायी कोई सूरत।

**

जोर आजमा ले तू भी पूरा..

देखूँ इश्क़ मुझे या वहशत?

**

'जान' ये दिन भी कट जायेंगे

देखी है जब उनकी नफरत।

**

तेरे ही दम से सारे भरम हैं

वर्ना क्या दोज़ख़ क्या…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2021 at 5:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल: 'नेह के आँसू'

नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ

अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।

                    **

रात छत पे जब निकल आता है तू

इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ।                      **   

       

 ये जो तन से मेरे आती है महक़..

मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।

                      **

ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..

मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।

                      **

सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप

मैं सदा को तेरी…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 19, 2021 at 7:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल: 'एक पल को''

2122 1212 22 (112)

मुझको तू गर मिला नहीं होता

इश्क़ है क्या पता नहीं होता।

               **

एक पल को जुदा नहीं होता.

ग़म तेरा बेवफ़ा नहीं होता।

                 **

रोज इक ख़त मैं लिखता हूँ तुझको

और तेरा 'पता' नहीं होता।

                

                  **

दो जहाँ हमने एक कर डाले

दर्द बढ़कर दवा नहीं होता।

                   **

इश्क़ है गर तो सोचता है क्या?

इश्क़ होता है या नहीं होता।

   …

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 15, 2021 at 3:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल~ 'इनकार मुझे'

2122 1122 2(11)2

ये अलग बात है इनकार मुझे

तेरे साये से भी है प्यार मुझे।

                **

सामने सबके बयाँ करता नहीं

रोज दिल कहता है, सौ बार मुझे।

                 **

लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं बिक जाऊं अगर

तू खरीदे सरे बाजार मुझे।

                  **

था हर इक दिन कभी त्यौहार की तर्ह

भूल अब जाता है इतवार मुझे।

                  **

चाहकर मैं तुझे, मुजरिम हूँ तेरा

क्यूँ नहीं करता गिरफ़्तार मुझे

   …

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 6, 2021 at 11:30pm — 10 Comments

' दिल '

22 22 22 22 

कैसा अक्कड़ बक्कड़ है दिल..

पा के तुझको अक्खड़ है दिल..

सपने देखे, ऐसे वैसे..

रब्बा जाने कैसे कैसे..

उड़ता फिरे ये बैठे बैठे..

चाहे मिलना जैसे तैसे..

फिरते फ़क़ीर सा फक्कड़ है दिल।

उठते ही जालिम ये सबेरे..

हाथ पैर ये जोड़े मेरे..

चल कर आयें, घर के फेरे..

चिपका गली से, जैसे तेरे..

मोहल्ले का, नुक्कड़ है दिल।

चाहे, तुझसे बातें ये…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on January 24, 2021 at 6:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल~मुहब्बत की राहों में

(122 122 122 122)

ये सोचा है समझा है परखा बहुत है।
मुहब्बत की राहों में धोखा बहुत है

ये मदमस्त तेरी निगाहें कसम से
तिलिस्म इनमें कोई तो रक्खा बहुत है।

जो छिपता है मुझसे उसे क्या है मालूम?
उसे मैंने छिप छिपके देखा बहुत है

न जन्नत की बातें न दैर-ओ-हरम ही
दिवानों को तेरा झरोखा बहुत है।

किसी रोज मिलने कभी तुम भी आओ
तेरे शहर ने मुझको देखा बहुत है।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 12:42pm — 14 Comments

ग़ज़ल~ तेरे आगे

(1122।1212।1212)



तेरे आगे मेरा जो हाल था सो है।

तेरी चाहत तेरा मलाल था सो है।



तू मेरी ज़िन्दगी बनेगी एक दिन

दिलेफित्ना का ये खयाल था सो है।



तेरी हसरत तेरी दिवानगी जुनून

तू मुझे साहिबे-कमाल था सो है 



यूँ गमों ने की बारिशें बहुत मगर

जो रगों में मेरे उबाल था सो है।



न रही तेरे दिल में पहले सी वफ़ा

न सही, मुझको ये बवाल था सो है



वही क़ातिल वही गवाह और सितम

वही मुंसिफ वही सवाल था सो है।



(मौलिक व्… Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 15, 2016 at 9:57pm — 8 Comments

ग़ज़ल

१२२  १२२ १२२  १२२

किसी मायने में भी कमतर नही हूँ                         

मगर पूजा जाऊं वो पत्थर नहीं हूँ

 

इसी को तो कहते है किस्मत भी शायद

तेरा हो के तेरा मुकद्दर नहीं हूँ

 

मेरी साइतों में ‘‘ठहरना’’ नही है..

मैं दरिया हूँ प्यासा ; समन्दर नहीं हूँ

 

पलटकर जरा देख इक़ बार फिर से

यही सोच लूँ गुजरा मंजर नहीं हूँ.

 

तेरे कू पे बैठा अगरचे हूँ लेकिन

जो कुछ मांगे मैं वो कलंदर नहीं…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on December 14, 2015 at 11:04am — 6 Comments

ग़ज़ल.................जान' गोरखपुरी

122 122 122 122



अजब इक तमाशा है ये ज़िन्दगी भी।

बिछड़ना है सबकुछ मगर दिल्लगी भी।।



बहुत बेमुरव्वत है तासीर दिल की।

मिली जितनी उतनी बढ़ी तिश्नगी भी।।



जमीं हो या आँखें...ख़ुशी हो या हो गम।

है अच्छी नही देर तक खुश्कगी* भी।। (सूखापन)



कहानी मुहब्बत की है तो पुरानी।

नयी सी मगर इसमें है ताजगी भी।।



न समझा कोई हुस्नो-इश्को-वफ़ा पर।

हरिक को है पर इनसे बावस्तगी* भी।। (सम्बद्धता)



ये माना कि बरबादियाँ भी बहुत की।…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 19, 2015 at 1:30pm — 6 Comments

''फ़लक पे सितारे चमक करके रोये'' (गज़ल)

१२२  /१२२  /१२२  /१२२

उजाले बहाये धधक करके रोये

फ़लक पे सितारे चमक करके रोये।

 

कोई चाँदनी बेवफ़ा तो थी वर्ना

क्यूँ सीना जलाये दहक करके रोये।

 

नमक इश्क का पी बहुत थीं ये आँखें

अदा अब ये सारे नमक करके रोये।

 

जो गम हम मिटाने चले जाम उठाने  

तो पैमाँ भराये छलक करके रोये।

तेरी खुश्बुओं से घर आँगन भराया

शजर फूल सारे महक करके रोये।

 

सलामत रहे तू दुआ है  हमारी

ये सुन गम…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 7, 2015 at 9:24am — 11 Comments

''कोई कैनवास नया दे''

११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२

आ के फ़िर से खूने जिगर तू कर, दिलो-जान तुझपे फ़िदा करूँ

कोई कैनवास नया दे, रंगे-वफ़ा मैं फ़िर से भरा करूँ

.

तेरी आँख को कभी झील तो कभी आसमां कहूँ और शाम

उसी खिडकी पर मै पलक बिछा, अपलक क़ुरान पढ़ा करूँ

.

नहीं चाँदनी है नसीब मेरा तो ख़्वाब रख के सिराहने

तेरी स्याह गेसुओं में छुपे हुए, जुगनुओं को गिना करूँ

.

तेरी बज्म के हैं जो क़ायदे, न कभी कुबूल रहे मुझे

मुझे तिश्नगी…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 10:31am — 12 Comments

''मन महकाये जब बौंराई अमिया''

22/22/22/22/22

तुमौर मै हमारी छोटी सी दुनिया

सागर से बारिश बारिश से नदिया

.

मीठी होती है मेहनत की रोटी

मैंने देखी है माँ दरते चकिया

.

ए.सी कूलर ने छीनी आबो-हवा

याद आती है नीम-छांव की खटिया

.

पक्की छत में जगह उसी को न मिली

सदियों रहा जो बन छप्पर की थुनिया

.

याद मुझे पुरनम बस तू है आती

मन महकाये जब बौंराई अमिया

.

दिल का सौदा क्या खाक वो करेगा?

नुकसान-नफ़ा सोचे तबीयते…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 8:50am — 8 Comments

''हंगाम फितरत पाल बैठा हूँ''

2212  2212   22

क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ

दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ

.

मुफ़्त इक मुसीबत पाल बैठा हूँ

बुत की मुहब्बत पाल बैठा हूँ

.

क्यूँ ये सितारे हैं ख़फ़ा मुझसे?

जो तेरी चाहत पाल बैठा हूँ

.

वो बेवफा कहने लगा मुझको

जबसे मुरव्वत पाल बैठा हूँ

.

कोई तो तुम अब फ़ैसला दे दो

पत्थर की सूरत पाल बैठा हूँ

.

गर तू तगाफुल पे अड़ा है

सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ

.

वारे…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 15, 2015 at 8:30am — 19 Comments

इश्क के बाद है क्या मिला?.('जान" गोरखपुरी)

२१२  /  २१२ /    २१२

 

 इश्क  के बाद है क्या मिला?

 वाँ भी था याँ भी पर्दा मिला

.

अब सनम जबकि तुम खो गये

ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला

.

उनके वादों का हासिल है क्या?

हाथ वादों के वादा मिला

.

हमने दुनिया बहुत देखी पर

कोई मुझको न तुमसा मिला

.

लाख़ कोशिश की हमने मगर

दिल से दिल का न सौदा मिला

.

जब खुला ख़त मेरे वास्ते

नाम हर शय में उसका मिला

.

बेतकल्लुफ़ न इतना हो…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 3, 2015 at 9:00am — 16 Comments

''आग पर आप भी इक दिन चलेंगे''

२१२      २१२२         २१२२

आग पर आप भी इक दिन चलेंगे

मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे

.

 

फूल सा तन महकने ये लगेगा

याद में रातदिन जब दिल जलेंगें

.

 

चाँद सा  रूप निखरेगा सुनहरा

इश्क की धूप में गर जो तपेंगें

.

आइना बातें भी करने लगेगा

यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे

.

 

रातभर रतजगे आँखें करेंगी

सुबहों-शाम आप भी रस्ता…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 31, 2015 at 7:48pm — 6 Comments

आशिक हो पर..........."जान" गोरखपुरी

२२१२      २२१२      २२

 

फ़रियाद ये मेरी सुनो कोई

दो इश्क में मुझको डबो कोई

..

सात आसमां पार उनका गर है शह्र

कू-ए-सनम ही ले चलो कोई

..

है दोजखो जन्नत मुहब्बत में

आशिक हो पर शायर न हो कोई

..

जाने गज़ल तुम मुझको दो थपकी

बरसों न पाया मुझमें सो कोई

..

‘जान’ आखिरी वख्त अपना जाने कौन?

लो प्रीत के मनके पिरो कोई

.

जीने की ख्वाहिश फिर न जाग उट्ठे

मरता हूँ नाम उस का न लो…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 12, 2015 at 9:30am — 11 Comments

अब जो जायेंगे......."जान" गोरखपुरी

 २१२२     २२१२      २१२२      २२

 

अब जो जायेंगे उस गली तो सबा छेड़ेगी

वारे उल्फ़त! मुझको मेरी ही वफ़ा छेड़ेगी

 ..

जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते

हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी  

..

  जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी  

राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी

..

 वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर

बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी

..

 सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े

हाँ…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 1, 2015 at 6:00pm — 25 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
3 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service