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गजल(शोर हवाओं....)

22 22 22 22

शोर हवाओं ने बरपाए,
घाव हरे होने को आए।1

बंटवारे का दर्द सुना,अब
देख कलेजा मुंह को धाए।2

रोजी खातिर परदेश गए
घर भागे सब,धक्के खाए।3

आफत ऐसी आई उड़कर
सबने अपने रंग दिखाए।4

बबुआ भैया जो कहते थे,
सबने फिर से हाथ उठाए।5

बांट रहे कुछ मुंह की रबड़ी
खाने को भूखे ललचाए।6

तीर कमान चढ़ाए चलते
दोमुख सबको कौन बताए?7

मांग बना जो राजा,बैठा
दाता लाठी - डंडे खाए।8

'जनता मालिक, वह सब करती',
सबने मिल अहसास कराए।9
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on April 4, 2020 at 11:15pm

आभार आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 7:15pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Manan Kumar singh on April 2, 2020 at 8:34am

नमस्ते आ.श्याम नारायण जी,शुक्रिया।

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2020 at 8:16am
नमस्ते जी, आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें l सादर

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