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"मिठाई का डिब्बा" - [लघुकथा] 29 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मिठाई का डिब्बा" -(लघुकथा)

"अरे सुनो, दीपावली पूजा का थोड़ा सा प्रसाद उसको भी तो दो "

"क्यों दें उसको ? साला न मीठी ईद पर बुलाता है घर पर, न कभी बकरीद पे गोश्त खिलवाता है काइयां, मनघुन्ना !"

"दे दो यार, भला आदमी है, ड्यूटी पे कभी टिफिन नहीं लाता, गंभीर होकर ड्यूटी करता है, और सभी धर्मों का आदर भी तो करता है !"

" तो ऐसा करते हैं कि ये वाला प्रसाद तू रख ले और जो प्रसाद अभी चपरासी ने अपन को दिया है, वो उसको दे देते हैं, साला याद रखेगा अगली ईद तक !"

इत्तेफाक़ से कनिष्ठ कर्मचारी सलीम भाई ने स्टाफ-रूम के दरवाज़े पर खड़े ये वार्तालाप सुना और उस मिठाई के डिब्बे पर उसकी नज़रें टिकी रह गयीं, जो वह इन सहकर्मी अधिकारियों के लिए बड़े अरमान से लाया था ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:15am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने एवं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोरे जी व आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:11am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे जी व आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 11, 2015 at 8:09pm

प्रेम को बढ़ाएं घृणा को दूर भगाएं ... ईद में मिले गले मिलकर दिए जलाएं!

Comment by vijay nikore on November 11, 2015 at 12:41pm

आपकी लघुकथा बहुत पसन्द आई। बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 11, 2015 at 12:07pm
त्वरित प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी व आदरणीय Tej Veer Singh जी ।अनुभव पर आधारित रचना है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 1:38pm

आदरणीय उस्मानी जी बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 9, 2015 at 8:03pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बहुत सुंदरता पूर्वक समाज में व्याप्त इस तुच्छ मानसिकता पर कटाक्ष !मज़ा आगया!

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