For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल 212 – 212 – 212 – 212

212 – 212 – 212 – 212 ग़ज़ल

किस तरह आप से मैं कहूं प्यार है

जिक्र से ही हुआ दिल जो गुलज़ार है

आपका साथ है और क्या चाहिए

आप ही का बना दिल तलबगार है

जान लो तुम  मुहब्बत तो  है इक बला

इस से बचना बड़ा ही तो दुशवार है

रोग उसको अचानक ही समझो लगा

अब बना घूमता वो तो अख़बार है

जब हकीकत समझ आई तो देर थी

जो हुआ सो हुआ अब तो इकरार है

हुस्न ने लूट लाखों लिए सोच कर

हो गया इक नया जख्म सरकार है

मुनीश “तन्हा” नादौन 9882892447

मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 1421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 24, 2016 at 8:42pm

अवांछित ही, भी, तो जैसे शब्दों को मिसरों में न रहने दें. ये भर्ती के माने जाते हैं. ग़ज़ल में शब्द भर्ती के हुए तो ग़ज़ल कमज़ोर हो जाती है.  बाकी तो आपका प्रयास आश्वस्त कर रहा है, आदरणीय मुनीश भाई.

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 18, 2016 at 10:34pm
आदरणीय मुनीश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। मगर, थोडा और समय आप देते तो शेर और प्रभावशाली हो सकते थे।

"जान लो तुम मुहब्बत तो है इक बला
इस से बचना बड़ा ही तो दुशवार है"

इसमें "बड़ा ही" और "दुश्वार" के बीच "ही" का प्रयोग खटक रहा है मुझे।
आदरणीय समर कबीर साहब, आपसे निवेदन है कि आप कृपया मेरी दुविधा दूर करें।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 18, 2016 at 4:49pm

इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय 

Comment by Samar kabeer on May 17, 2016 at 6:51pm
जनाब मुनीश'तन्हा'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Sushil Sarna on May 17, 2016 at 3:40pm

आदरणीय सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 1:00pm
आ.मुनीश सरजी लय से भरी अच्छी ग़ज़ल हुयी है,हार्दिक बधाई।

जान लो तुम ये मुहब्बत है इक बला
इस से बचना बड़ा ही तो दुशवार है....ये शेर मेरे ख्याल से बेबहर हो रहा है कृपया देख लें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service